Indian News : भारतीय दंड संहिता की धाराओं में ऐसे कानूनी प्रावधान (Legal provision) दर्ज हैं, जो अदालत (Court), पुलिस (Police) और अन्य कानूनी एजेंसियों (Legal agencies) की कार्य प्रणाली के दौरान प्रयोग किए जाते हैं. इसी तरह से आईपीसी (IPC) की धारा 87 (Section 87) में बताया गया है कि सहमति किया गया ऐसा काम जिसका मकसद किसी की मौत या भारी नुकसान (Death or heavy loss) पहुंचाना नहीं हो और ना ही ऐसी कोई आशंका (Apprehension) हो. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 87 इस बारे में क्या कहती है?

आईपीसी की धारा 87 (Indian Penal Code Section 87)


भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 87 (Section 87) में साफ तौर पर बताया गया है कि सहमति से किया गया ऐसा काम जिसका मकसद किसी की मौत या किसी को भारी नुकसान पहुंचाना नहीं हो और उस काम करने वाले को ऐसी कोई आशंका हो. IPC की धारा 87 के मुताबिक कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति (Death or heavy loss) कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्ता को यह ज्ञात न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना संभव है, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध (Offence) नहीं है. जो उस बात से अठारह वर्ष से अधिक आयु के के व्यक्ति को, जिसने वह अपहानि सहन करने की चाहे अभिव्यक्त (Express), चाहे विवक्षित सम्मति (Implied consent) दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्ता द्वारा आशयित (Intended) हो अथवा जिसके बारे में कर्ता को ज्ञात हो कि वह उपर्युक्त जैसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि की जोखिम उठाने की सम्मति (Willingness to take risks) दे दी है, उस बात द्वारा कारित होनी संभव है.




क्या होती है आईपीसी (IPC)


भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहित (RPC) लागू होती थी.

अंग्रेजों ने लागू की थी IPC


ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता कोहम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

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