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स्वामी आशुतोष बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही मेडिटेशन में बहुत रुचि थी. 1975 उनके जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव बनकर आया. भावातीत योग के प्रणेता महर्षि महेश योगी ने योग शिविर का आयोजन किया था जो स्विट्जरलैंड में था. आशुतोष को योग अभ्यास के रुचि थी इसलिए वे भी इस शिविर में शामिल होने के लिए चले गए.
पूरब की लाली का असर पश्चिम पर कुछ इस तरह से पड़ा कि स्विट्जरलैंड से भारत आए उर्स स्ट्रोबल बन गए आशुतोष और आजीवन धारण कर लिया ब्रह्माचार्य जीवन. कहानी यहीं पर खत्म नहीं होती, भारत के वेद पुराण और धर्म ग्रंथों से प्रभावित होकर उन्होंने अपना जीवन इसी के प्रचार प्रसार में समर्पित कर दिया और आज उत्तराखंड के कौसानी में उनका आश्रम है, जहां पर वे आने वाली पीढ़ी को वेद पुराणों का पाठ पढ़ाते हुए उन्हें वैदिक कल्चर के जरिए शिक्षा दे रहे हैं. आज इनके आश्रम में जो बच्चे शिक्षा ले रहे हैं, वे शैक्षणिक बोधता के साथ साथ पौराणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान भी अर्जित कर रहे हैं. इसके साथ ही आचार्य आशुतोष के साथ उसके कई प्रशिक्षक भी जुड़े हैं जो उन्हीं से शिक्षा लेकर आगे बच्चों तक पहुंचा रहे हैं.