Indian News : नई दिल्ली | भारत की विधायिका प्रणाली यानी लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभा में महिलाओं की बढ़ चढ़कर भागीदारी सुनिश्चित होगी. इसके लिए आखिरकार महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. इससे पहले संसद के विशेष सत्र के बीच एनेक्सी बिल्डिंग में कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें बिल को मंजूरी दे दी गई है. अब इसे लोकसभा में पेश करने की तैयारी की जा रही है. खास बात है कि इस बिल के संसद के दोनों सदनों में पास हो जाने के बाद संसदीय चुनाव प्रणाली में महिला जनप्रतिनिधियों की भूमिका बड़ी होगी.
महिला आरक्षण बिल लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने के संबंध में है. इसके प्रस्ताव में यह बात शामिल की गई है कि विधानसभाओं और लोकसभा में कम से कम 33 % सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
इसके अलावा एससी/ एसटी और एंग्लो इंडियन महिलाओं के लिए भी आरक्षित सीटों में से कम से कम 33 % महिलाओं के लिए सुनिश्चित करने का प्रावधान है. अगर यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद लागू होता है तो इससे सदन में महिलाओं की बड़ी भागीदारी सुनिश्चित होगी.
दरअसल महिला आरक्षण बिल पिछले 27 सालों से पेंडिंग है. सबसे पहले 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लोकसभा में इस विधेयक को आगे बढ़ाया था, लेकिन पारित नहीं हो पाया था. इसे मूर्त रूप देने के लिए 2010 में आखरी बार प्रयास किया गया था. तब कांग्रेस की अध्यक्षता में केंद्र में यूपीए की सरकार थी. इसे राज्यसभा में पेश किया गया.
ओबीसी कोटा को लेकर कुछ दलों ने भारी हंगामा किया था. लेकिन मार्शलों की मदद से कुछ सांसदों को बाहर कर इसे उच्च सदन में पास कर लिया गया था. लोकसभा में यह गिर गया क्योंकि इसे पास करने के लिए आवश्यक समर्थन नहीं मिल पाया. इस बिल का समर्थन बीजेपी और कांग्रेस दोनों बड़ी पार्टियां करती रही हैं.
वर्तमान स्थिति की बात करें तो मौजूदा समय में लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 15 % से भी कम है. लोकसभा में फिलहाल सांसदों की संख्या 543 है, जिनमें से केवल 78 महिला सदस्य चुनी गई हैं. पिछले साल दिसंबर में सरकार की ओर से एक आंकड़ा साझा किया गया था, जिसमें बताया गया था कि राज्यसभा में भी महिलाओं की संख्या 14 % से कम है.
इसके अलावा सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, ओडिशा, मणिपुर, मेघालय, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, पुडुचेरी और हिमाचल प्रदेश विधानसभाओं में महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या 10% से भी कम है. इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद राज्य की विधानसभाओं और लोकसभा में इनकी संख्या कम से कम एक तिहाई होना सुनिश्चित हो जाएगा. इससे देश भर में महिलाओं से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में आसानी होगी.
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