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SCO summit 2022: समरकंद में आज दुनिया के दिग्गज राष्ट्राध्यक्षों का जमावड़ा है. वर्तमान ही नहीं अतीत में भी ये शहर दुनिया की सत्ता, तिजारत और सैन्य ताकत का केंद्र रहा है. इतिहास के बड़े नाम जैसे सिकंदर, चंगेज खान, तैमूर लंग और बाबर का इस शहर से वास्ता रहा है. सिल्क रूट पर मौजूद होने की वजह से समरकंद पर हमेशा दुनिया की नजरें रहीं. लगभग 2700 सालों के इतिहास में ये शहर कई बार बना और कई बार फना हुआ.

उज्बेकिस्तान के जिस शहर समरकंद में SCO (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन) की बातचीत के लिए कूटनीति की टेबल सजी है, इस शहर का सियासी और तिजारती मिजाज कोई 50-100 सालों का नहीं है. हजारों वर्षों से दुनिया फतह करने निकले कई सम्राट, लड़ाके और वार लॉर्ड्स हजारों सालों से अपनी तलवार की धार इस मुल्क पर आजमाते रहे हैं और इसे लहुलूहान करते रहे हैं. आप इतिहास के कुछ बर्बर लुटेरों की कल्पना करिए, जो नाम आपके जेहन में आएंगे तकरीबन हर एक ने इस शहर को छलनी-छलनी किया है. सिकंदर, चंगेज खान, तैमूर लंग. वहीं बाबर इस शहर पर कब्जे के लिए ताउम्र तड़पता रहा. ये इतिहास का एक अजीब इंसाफ है कि इस शहर पर कब्जा कर पाने में नाकाम रहे बाबर ने थक-हारकर हिन्दुस्तान की ओर रुख किया, जहां दक्षिण एशिया का मुस्तकबिल बदलने के लिए एक सल्तनत उसका इंतजार कर रही थी. पाशविक क्रूरता के लिए मशहूर चंगेज खान और तैमूर लंग का जंगी कारवां इस शहर की दीवारों से टकराया. यूनेस्को के अनुसार युद्ध और तिजारत के बीच इस शहर में एक मिश्रित संस्कृति पनपती रही और ये शहर दुनिया की संस्कृतियों का समागम बिंदु बन गया.




उज्बेकिस्तान के जिस शहर समरकंद में SCO (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन) की बातचीत के लिए कूटनीति की टेबल सजी है, इस शहर का सियासी और तिजारती मिजाज कोई 50-100 सालों का नहीं है. हजारों वर्षों से दुनिया फतह करने निकले कई सम्राट, लड़ाके और वार लॉर्ड्स हजारों सालों से अपनी तलवार की धार इस मुल्क पर आजमाते रहे हैं और इसे लहुलूहान करते रहे हैं. आप इतिहास के कुछ बर्बर लुटेरों की कल्पना करिए, जो नाम आपके जेहन में आएंगे तकरीबन हर एक ने इस शहर को छलनी-छलनी किया है. सिकंदर, चंगेज खान, तैमूर लंग. वहीं बाबर इस शहर पर कब्जे के लिए ताउम्र तड़पता रहा. ये इतिहास का एक अजीब इंसाफ है कि इस शहर पर कब्जा कर पाने में नाकाम रहे बाबर ने थक-हारकर हिन्दुस्तान की ओर रुख किया, जहां दक्षिण एशिया का मुस्तकबिल बदलने के लिए एक सल्तनत उसका इंतजार कर रही थी. पाशविक क्रूरता के लिए मशहूर चंगेज खान और तैमूर लंग का जंगी कारवां इस शहर की दीवारों से टकराया. यूनेस्को के अनुसार युद्ध और तिजारत के बीच इस शहर में एक मिश्रित संस्कृति पनपती रही और ये शहर दुनिया की संस्कृतियों का समागम बिंदु बन गया.

समरकंद कैसे पड़ा नाम?

सेंट्रल एशिया में उत्तर-पूर्वी उज़्बेकिस्तान में जेराफ़शां नदी के किनारे बसे इस शहर का इतिहास टटोले तो पता चलता है कि यहां मनुष्य ईसा पूर्व 1500 से ही रहता आ रहा है. समरकंद का वजूद तो सालों से था, लेकिन इसका तब नाम अलग था. उज्बेकिस्तान में जेराफशां की पहाड़ियां सर्दी के मौसम में भारी बर्फबारी, बारिश से जम जाया करती हैं. इन्हीं पहाड़ियों में सफेद फर वाले तेंदुआ का निवास होता है. प्राचीन किवदंतियों के अनुसार, ईसा पूर्व 8वीं सदी में जब समरकंद शहर बसाया जा रहा था तो इन्हीं पहाड़ियों से एक तेंदुआ नीचे आया और इस शहर को बसाने की इजाजत दी. तब से ही यहां से लोग इन तेंदुओं के साथ अपना जुड़ाव जाहिर करते हैं. स्वभाव में भी यहां के लोग निडर, बहादुर और गर्व से भरे होते हैं.

समरकंद नाम सोगदियाना (Sogdiana) से जुड़ा है. इसका अर्थ होता है पत्थरों का किला या पत्थरों से बना शहर. प्राचीन काल में समरकंद सोगदियाना राज्य की राजधानी थी. तब समरकंद को Afrosiab कहा जाता था. ग्रीक और रोमन इस शहर को मरकंडा के नाम से जानते थे. जितना मैं सोच सकता था, उससे भी सुंदर है समरकंद: सिकंदर जब अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर) विश्व विजय पर निकला तब तक ये स्थान एक सुंदर और विकसित शहर का रूप ले चुका था. लेकिन सिकंदर के यूनानी कमांडरों के प्रचंड प्रहार के सामने समरकंद की पत्थर की दीवारें ढह गईं. 329 BCE में सिकंदर ने इस शहर को फतह कर लिया. सिकंदर इस शहर की खूबसूरती से हैरान था. सिकंदर की हैरानी को बताते हुए उज्बेकिस्तान की एक वेबसाइट में लिखा गया है, “समरकंद के बारे में मैंने जो कुछ भी सुना वह सब सच है, बिल्कुल सब कुछ! सिवाय एक बात के, जितना मैं सोच सकता था, ये शहर उससे कहीं अधिक सुंदर निकला.”

सिकंदर जब समरकंद को अपने हाल पर छोड़कर आगे निकला तो सौदागरों और मेहनतकशों का ये शहर एक बार फिर अपने बाशिंदों के मेहनत के दम पर खिल उठा और सैकड़ों सालों तक भरपूर तरक्की की. 8000 KM लंबे सिल्क रूट के ठीक बीच में है समरकंद चीन, भारत-पाकिस्तान, फारस के रास्ते पर मौजूद होने के कारण ये शहर सिल्क रूट का हिस्सा था. जिसे रेशम मार्ग कहते हैं और जो रास्ता चीन को रोम और कुस्तुनतुनिया से जोड़ता था. 8000 किलोमीटर लंबे इस सिल्क रूट के ठीक बीच में पड़ता था समरकंद. इसलिए व्यापार और राजनीति, दोनों में ही ये शहर एशिया और यूरोप के बीच सेतु का काम कर रहा था. इस मार्ग से कपड़ा, रेशम, गेहूं, चावल, घोड़ा, खच्चर और फलों का खूब सौदा हुआ. चीन आज जब समरकंद में SCO की इस बैठक में शामिल हो रहा है तो वह इस सिल्क रूट के नॉस्टेलजिया से मुक्त नहीं हो सका है. इस्लाम के आगमन के साथ समरकंद में हुई हलचल छठी सदी में इस्लाम के आगमन के साथ ही दुनिया भर में सियासी और सैन्य हलचल होनी शुरू हो गई. इसके प्रभाव से समरकंद भी अछूता न रहा. छठी सदी में समरकंद पर तुर्कों ने राज किया. 712 ईसवी में अरब शासक कुतैबा इब्न मुस्लिम ने समरकंद पर कब्जा कर लिया. इसके बाद समरकंद ग्रेटर खोरासन का हिस्सा बन गया. 9वीं सदी में समरकंद Samanid राज्य का हिस्सा बन गया. वक्त आगे बढ़ता रहा. समरकंद की सत्ता किसी के हाथों में स्थिर न रही. यहां का राज सबको लुभाता. बड़ी मारकाट के बाद इस शहर की कुर्सी तो हासिल होती, लेकिन ये स्थायी नहीं थी. 10वीं सदी में ये शहर Karakhanid का हिस्सा बन गया. इस दौरान समरकंद में ऐतिहासिक महत्व की कई इमारतें बनाई गईं, लेकिन तब तक सुदूर पूर्व में मंगोल शासक चंगेज खान दुनिया में खुरेंजी का नया इतिहास लिखने आ चुका था.

चंगेज खान ने बेपनाह बर्बरता दिखाई सन् 1218 में मंगोल साम्राज्य का विस्तार अमू दरिया, तुरान और ख्वारज़्म राज्यों तक हो गया था. 1219-1221 के बीच चंगेज खान ने क्रूरता की इंतहा कर दी. उसने कई बड़े राज्यों- ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख़, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात को गाजर-मूली की तरह रौंद कर रख दिया. जिन राज्यों ने सरेंडर किया वे तो बच गए, जिन्होंने टकराव का रास्ता चुना मंगोल सेना ने वहशियों की तरह काट दिया. मंगोलों ने बेपनाह बर्बरता का परिचय दिया और लाखों की संख्या में लोगों की हत्या की. मंगोल खानाबदोश कबीले थे, वे शहरी जिंदगी से नफरत करते थे. यही वजह रही कि उन्होंने समरकंद जैसे सुंदर शहर में हैवानों जैसी तबाही मचाई और समरकंद के कई धरोहरों को जमींदोज कर दिया. हजारों लोगों को मार डाला. समरकंद की खंडहर बन चुकी इमारतें इस भीषण तबाही को सिसक-सिसक को देख रही थीं.

जैसा कि इतिहास में होता है, चंगेज को भी वही नसीब हासिल हुआ. ताउम्र जंग, लूट, हत्या और सफर में रहने वाले चंगेज खान की 1227 में मौत हो गई. लेकिन समरकंद पर 1368 ईसवी तक मंगोल शासन का राज रहा. इसके बाद समरकंद के भाग्य में तैमूर लंग ने दस्तक दी. चंगेज के बाद तैमूर लंग बना बादशाह भारत में कत्ले आम मचाने वाला तैमूर लंग समरकंद का लोकप्रिय राजा साबित हुआ. तैमूर लंग यूरेशियन क्षेत्र का अंतिम खानाबदोश राजा था. उसकी ब्लडलाइन तुर्क और मंगोल थी. 1370 ईसवी में समरकंद पर तैमूर लंग का शासन शुरू हुआ. उसने समरकंद को अपनी राजधानी बनाया. इस दौरान यहां फिर से एतिहासिक इमारतों का निर्माण हुआ. नई मस्जिदें बनाई गईं. दुनिया भर से कलाकार, विज्ञान प्रेमी, तालिब, व्यापारी इस शहर में आने लगे. इस शहर का खोया गौरव वापस मिल गया. तैमूर ने ही समरकंद की हिफाजत के लिए 8 किलोमीटर लंबी दीवार बनवाई. 1399 ईसवी में तैमूर लंग ने दिल्ली का अभियान खत्म किया तो उसने समरकंद में एक भव्य मस्जिद बनाने की सोची. 1404 तक ये मस्जिद बन गई और इसे नाम दिया गया बीबी खानम मस्जिद. भव्य दरवाजों और मेहराब गुम्बद की वजह से ये मस्जिद इस्लामिक स्थापत्य कला का नायब नमूना बन गया है. यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार तैमूर ने इस मस्जिद को बनवाने के लिए 95 हाथियों से ईरान और भारत से पत्थर मंगवाए.

तैमूर के परपोते Ulughbeg ने ही समरकंद के प्रसिद्ध रेगिस्तान में एक चौराहा बनवाया, जहां ज्यादातर नीले रंगों के पत्थरों से निर्मित कलात्मक इमारतें विद्यमान हैं. 1420 ईस्वी में उसने खगोलीय घटनाओं को समझने के लिए एक बेधशाला (Observatory) बनवाई. 1500 में समरकंद की किस्मत ने फिर दगा दिया 1500 ईसवी में समरकंद के भाग्य ने एक बार फिर पलटा खाया. इस बार इस शहर पर उज्बेक लड़ाकों ने हमला किया और तैमूर के वंशजों से गद्दी छीन ली. इस जंग का नेतृत्व कर रहा था Shaybanids का राजा मुहम्मद शायबानी. ये वही शायबानी था जो आगे चलकर मुगल शासक बाबर का कट्टर प्रतिद्वंदी बना. शायबानी ने समरकंद को Bukhara Khanate साम्राज्य में शामिल कर लिया. शायबानी ने समरकंद में एक भव्य मदरसा बनवाया. उज्बेकिस्तान जब सोवियत कंट्रोल में आया तो इस मदरसा को ढहा दिया गया. समरकंद पाने की बाबर की अधूरी हसरत बाबर को उज्बेकिस्तान के फरगना में एक छोटी सी रियासत विरासत में मिली थी. लेकिन उसे जो बड़ा मिला था वो था तैमूरी और चंगेजी नस्ल का खून. बाबर पिता की ओर से तैमूर की 5वीं पीढ़ी का वंशज था और मां की तरफ से चंगेज खान की 14वीं पीढ़ी का वंशज था. लड़ाकों के इस खून से बने योद्धा बाबर में साहस, धैर्य, वीरता गजब की थी. बाबर ने तीन बार समरकंद पर फतह पाने की कोशिश की, लेकिन तीनों बार उसे मात खानी पड़ी. बाबर समरकंद पर अपना स्वभाविक अधिकार मानता था. उसका मानना था कि समरकंद की स्थापना उसके पूर्वज तैमूर ने की है. इसलिए वह इस शहर पर अपना अधिकार समझता था. 1497 ईसवी में नौजवान बाबर ने पहली बार समरकंद पर धावा बोला. जुनूनी बाबर को कामयाबी मिली और वह जंग जीत गया. 15 साल के बाबर के लिए ये बड़ी जीत थी. लेकिन तब तक फरगना में विद्रोह हो गया और पिता की नेमत फरगना उसके हाथ से निकल गया. इससे बाबर बहुत दुखी हुआ. फरगना बचाया जाए या समरकंद. इस कशमकश में बाबर ने दोनों ही राज्यों को खो दिया. इस हार का सदमा बाबर के दिल में ताउम्र रहा. बाबर ने अगले तीन सालों तक अपने लश्कर को फिर सजाया-संवारा. वफादार सैनिकों की नियुक्ति की और 1501 में उसने समरकंद पर फिर से हमला कर दिया. तब समरकंद की सत्ता जंगजू शायबानी के हाथों में थी. विशाल सैनिकों के दमपर शायबानी ने बाबर को फिर से रौंद दिया. बाबर को बंदी बना लिया गया. बाबर को शायबानी के कब्जे से छूटने के लिए अपनी बहन का निकाह शायबानी से करने का प्रस्ताव देना बड़ा. एक बार फिर समरकंद पाने की बाबर की जिद दम तोड़ गई.

बाबर की खानाबदोशी जारी रही. लेकिन उसकी आंखें समरकंद का सपना अब भी देखती थी. 1511 ईसवी में ईरान के शासक शाह इस्माईल प्रथम की मदद से बाबर ने एक बार फिर समरकंद फतह करने की मंशा से हमला किया. इस बार थोड़े ही देर के लिए सही किस्मत बाबर के साथ थी और वह जंग जीत गया. लेकिन ये जीत अस्थायी थी. धार्मिक वजहों से समरकंद में बाबर के खिलाफ बगावत हो गई और एक बार समरकंद उसके हाथों से फिसल गया. थका-हारा बाबर चला चेनाब की ओर बाबर अबतक बुरी तरह से टूट चुका था. वह लगभग कंगाल हो चुका था. उज्बेक लड़ाके बाबर की तलाश कर रहे थे. इस समय तक बाबर सिंधु नदी के पार बसे हिन्दुस्तान की समृ्द्धि की कहानियां सुनी. तैमूर लंग और गौरी-गजनबी और तब तक भारत को लूटकर वापस जा चुके थे. चारों ओर से हताश बाबर ने 1519 में चेनाब नदीं (पंजाब) की ओर कदम बढ़ा दिए. समरकंद की हार से आहत बाबर ने अगले कुछ सालों में ही दक्षिण एशिया का इतिहास बदल दिया. 17वीं सदी में समरकंद पर कब्जे के लिए जंग चलती रही. हालात ऐसे हुए जब समरकंद एक बार फिर गुमनामी में डूब गया और बुखारा राजनीतिक और सैन्य सत्ता का केंद्र बन गया. 1868 ईसवी में इस शहर पर रूसी साम्राज्य का कब्जा हो गया. 1888 में रेलवे के आविष्कार ने इस शहर की किस्मत फिर बदली. रेल लाइनों के बिछने की वजह से ये शहर एक बार फिर व्यापारिक केंद्र के रूप में अपने महत्व को वापस पा लिया. कोरोना के बाद अहम है SCO की बैठक अतीत के पन्नों से निकलकर वर्तमान की ओर आएं तो कोरोना के बाद हो रही SCO की ये बैठक बेहद अहम है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कोरोना के बाद पहली बार व्यक्तिगत रूप से किसी शिखर सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं. इस के अलावा पुतिन और शी जिनपिंग की कोरोना के बाद ये पहली मुलाकात है. अगर भारत के नजरिए से देखें तो ये बैठक और भी अहम है. कूटनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा हो रही है कि क्या SCO के बैनर तले प्रधानमंत्री मोदी शी जिनपिंग से मिलेंगे? इसके अलावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी इस बैठक में शामिल हो रहे हैं. बतौर प्रधानमंत्री पीएम मोदी और शाहबाज शरीफ की ये पहली भेंट होगी. बता दें कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में SCO की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है. इसके अलावा क्षेत्रफल के मामले में ये संगठन दुनिया के लगभग एक तिहाई इलाके को कवर करता है और इसके आठ सदस्य देशों में दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी रहती है.

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