Indian News : कैनबरा।   पृथ्वी पर सात महाद्वीप हैं, लेकिन एक नया बनने की प्रक्रिया में है। वैज्ञानिकों की माने तो प्रशांत महासार का आकार छोटा होगा और एक नए महाद्वीप का निर्माण होगा, जिसका नाम Amasia होगा। ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि प्रशांत महासागर हर साल एक इंच सिकुड़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो निकट भविष्य में होने वाली है। उनका मानना है कि शायद जब ये महाद्वीप बनेगा तब तक शायद इंसान इस धरती पर नहीं बचें।

महाद्वीप के बनने को लेकर वैज्ञानिकों ने गणना की है। इसके मुताबिक 20-30 करोड़ वर्षों में एक सुपर महाद्वीप का निर्माण होगा। अमेरिका और एशिया की जमीन एक साथ मिल कर अमेसिया महाद्वीप को बनाएंगी। ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में कार्टिन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सुपरकंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए इस भविष्यवाणी को किया है। नेशनल साइंस रिव्यू में वैज्ञानिकों ने लिखा, ‘माना जाता है कि पृथ्वी के ज्ञात सुपर महाद्वीप बहुत अलग-अलग तरीके से बने हैं, जैसे अंतर्मुखी और बहिर्मुखी।’




पूर्व में बने सुपर महाद्वीप के टूटने के दौरान आंतरिक सागर बने, जबकि बाद में महासागर बने। वैज्ञानिकों ने 4-D जियोडायनामिक मॉडलिंग का इस्तेमाल कर इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की है। दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात महाद्वीप नूना लगभग 180 करोड़ साल पहले बना था। कर्टिन के अर्थ डायनेमिक्स रिसर्च ग्रुप के चुआन हुआंग ने कहा कि सुपर महाद्वीप बनने में सैकड़ों साल लगेंगे।

वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले 2 अरब साल से पृथ्वी पर महाद्वीप आपस में मिलते रहे हैं। हर 60 करोड़ साल में एक विशाल महाद्वीप बनता है, जो इसका एक चक्र है। उन्होंने आगे कहा कि आने वाले कुछ करोड़ वर्षों में हमारे महाद्वीप एक बार फिर से साथ आएंगे। इस संभावित महाद्वीप का नाम अमेसिया क्यों रखा गया इसका कारण भी वैज्ञानिकों ने बताया। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अमेरिका और एशिया के मिलने से बनेगा। दोनों को मिला कर इसे अमेसिया नाम दिया गया।

धरती में कुछ समय पहले सभी आज के 7 महाद्वीप एक हुआ करते थे। लेकिन महाद्वीपीय बहाव का पहला सही मायने में विस्तृत और व्यापक सिद्धांत 1912 में जर्मन मौसम विज्ञानी अल्फ्रेड वेगेनर द्वारा प्रस्तावित किया गया था। जिन्होंने सभी महाद्वीप धीरे धीरे एक महाद्वीप धीरे धीरे पानी की निचे की धरती के भीतर समाए लावा बाहर ऊपर की धरती एक दूसरे से दूर होने लगी और ऐसे कर के आज के धरती का निर्माण हुआ था।

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