Indian News : यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। 603,628 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है। क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा देश रूस है जिसने अब अपनी नजरें यूक्रेन पर गड़ा रखी हैं। यूक्रेन के पूर्व और उत्‍तर-पूर्व में रूस स्थित है। ताजा घटनाक्रम में यूक्रेन बॉर्डर पर रूसी सेना के आगे बढ़ने के साथ ही डिफेंस एक्‍सपर्ट तीसरे विश्‍व युद्ध की आशंका जताने लगे हैं। यूक्रेन की आबादी 41 मिलियन (40.10 करोड़) से ज्‍यादा है और वह यूरोप का आठवां सबसे ज्‍यादा आबादी वाला देश है। रूस के सामने यूक्रेन कहीं नहीं ठहरता। रूस का क्षेत्रफल 17,125,191 वर्ग किलोमीटर है, यूक्रेन से करीब तीन गुना ज्‍यादा। रूस की अर्थव्‍यवस्‍था विकसित है, उसकी गिनती दुनिया के दो सबसे ताकतवर देशों में होती है। संघर्ष का केंद्र बने यूक्रेन के बारे में सबकुछ जानिए, आगे की स्‍लाइड्स में।
यूक्रेन जिस भौगोलिक इलाके में हैं, उसपर कई बार आक्रमण हुआ। मंगोल, पोलिश-लिथुआनियन कॉमनवेल्‍थ, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटमॉन, रूस के जार… यूक्रेन पर बहुतों का शासन रहा है। 17वीं और 18वीं सदी में इसका इलाका पोलैंड और रूसी साम्राज्‍य के बाद बंट गया। 20वीं सदी में रूसी क्रांति के बाद, यूक्रेन की आजादी का आंदोलन शुरू हुआ। 23 जून 1917 को यूक्रेनियन रिपब्लिक को अंतरराष्‍ट्रीय मान्‍यता मिली। 1922 में जब सोवियत यूनियन बना तो उसमें यूक्रेनियन SSR भी शामिल था। 1991 में सोवियत के विघटन के बाद यूक्रेन को फिर आजादी मिली।

यूरोप में यूक्रेन की पोजिशन समझ‍िए

यूक्रेन पूर्वी यूरोप का एक प्रमुख देश है। 2,782 किलोमीटर लंबी तटरेखा वाले यूक्रेन की सीमा कई देशों से लगती है। पूर्व और उत्‍तर-पूर्व में यूक्रेन की सीमा रूस से लगती है। यूक्रेन के उत्‍तर में ही बेलारूस है जिसने खुलकर रूस का समर्थन किया है। पश्चिम में पोलैंड, स्‍लोवाकिया और हंगरी हैं। यूक्रेन के दक्षिण में रोमानिया और मोलदोवा हैं। यहां का सबसे बड़ा शहर राजधानी कीव है।

यूरोप का सबसे गरीब देश है यूक्रेन

यूक्रेन पूरे यूरोप का सबसे गरीब देश है। गरीबी के अलावा भ्रष्‍टाचार यहां की सबसे बड़ी समस्‍या है।
यूक्रेन की रैंकिंग विकासशील देश की है। मानव विकास सूचकांक में यूक्रेन 74वें स्‍थान पर है।
यहां की जमीन काफी उपजाऊ है जिसके चलते यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े अनाज सप्‍लायर्स में शामिल हैं।
GDP के आधार पर यूक्रेन की अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया में 55वीं सबसे बड़ी है। PPP के आधार पर 40वां नंबर।
यूक्रेन के पास संयुक्‍त राष्‍ट्र, काउंसिल ऑफ यूरोप जैसी प्रमुख संस्‍थाओं की सदस्‍यता है।
यूक्रेन नैचरल गैस और पेट्रोलियम का उत्‍पादन और प्रोसेसिंग खुद करता है मगर अपनी ज्‍यादातर ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है।
यूक्रेन की 80% नैचरल गैस सप्‍लाई का आयात होता है, जिसमें रूस का बड़ा हिस्‍सा है।

रूस के साथ यूक्रेन का क्‍या मसला है?

दोनों देशों के बीच विवाद की जड़ नाटो है। नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन। इसे 1949 में शुरू किया गया था। यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन रूस नहीं चाहता कि ऐसा हो।
तनाव यहीं से शुरू हुआ और अंजाम युद्ध तक आ पहुंचा। यह समझना जरूरी है कि यूक्रेन और रूस विवाद में नाटो की एंट्री कहां से हुई और रूस यूक्रेन के लिए इतना पागल क्यों हो गया?
1939 से 1945 के बीच दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के इलाकों से सेनाएं हटाने से इनकार कर दिया। 1948 में बर्लिन को भी घेर लिया। इसके बाद अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए 1949 में नाटो की स्थापना की।
नाटो बना, तब इसके 12 सदस्य देश थे। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क।
आज इसमें 30 देश हैं। यह एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है। अगर कोई बाहरी देश किसी नाटो देश पर हमला करता है, तो उसे बाकी सदस्य देशों पर हुआ हमला माना जाएगा और उसकी रक्षा के लिए सभी देश मदद करेंगे।

सोवियत संघ की टूट का यूक्रेन का संबंध

दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया दो खेमों में बंट गई थी। दो सुपर पावर बन चुके थे। एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ। 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया। इससे अलग होकर 15 नए देश बने। ये 15 देश थे, यूक्रेन, आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान। इसके बाद दुनिया में अमेरिका एकमात्र सुपर पावर बचा। इससे अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो दायरा बढ़ाता चला गया। सोवियत संघ से टूटकर अलग बने देश धीरे-धीरे नाटो के सदस्य बनते चले गए। 2004 में इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया नाटो में आ गए। 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को भी नाटो में शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन दोनों देश सदस्य नहीं बन सके।

2014 के बाद बदले हालात

2014 के राष्ट्रपति चुनाव में यूक्रेन में विक्टर यानुकोविच की जीत हुई। वे रूस समर्थक माने जाते हैं। उनकी जीत के बाद यूक्रेन में विद्रोह हो गया। इसे ऑरेंज रिवॉल्यूशन कहा गया। प्रदर्शनकारी दोबारा गिनती की मांग कर रहे थे। तब रूस ने इन प्रदर्शनों के पीछे पश्चिमी देशों का हाथ होने का दावा किया। 2008 में विपक्षी नेता ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का प्लान पेश किया। अमेरिका ने इसका समर्थन किया, लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विरोध किया।

नाटो ने जॉर्जिया और यूक्रेन को शामिल करने का ऐलान किया, लेकिन रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया और 4 दिन में उसके दो इलाकों पर कब्जा कर लिया। दरअसल, पुतिन को यह चिंता सता रही है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ जाता है तो रूस पूरी तरह इसके देशों से घिर जाएगा और उसे यह गवारा नहीं। पुतिन का तर्क है कि यूक्रेन नाटो में जाता है तो भविष्य में नाटो देश की मिसाइलें यूक्रेन की धरती पर फिट की जा सकेंगी, जो रूस के लिए बड़ी चुनौती हो सकती हैं।

रूस और नाटो में कौन मजबूत?

सैन्य ताकत हो या रक्षा पर खर्च, दोनों मामलों में रूस और नाटो का कोई मुकाबला नहीं है। नाटो के मुताबिक, 2021 में सभी 30 देशों का अनुमानित संयुक्त खर्च 1,174 अरब डॉलर से ज्यादा का है। 2020 में नाटो के देशों ने 1,106 अरब डॉलर खर्च किए थे। रूस ने 2020 में रक्षा पर 61.7 अरब डॉलर का खर्च किया था। नाटो के 40 हजार से ज्यादा सैनिक कभी भी लामबंद होने के लिए तैयार हैं। अगर युद्ध में नाटो सीधे शामिल हुआ तो उसके पास 33 लाख से ज्यादा जवान हैं। रूस के पास 12 लाख की सेना है, जिसमें से 8 लाख जवान सक्रिय हैं।

अब क्या चाहते हैं पुतिन?

समय समय पर पुतिन कहते रहे हैं कि यूक्रेन भाषा, संस्कृति और राजनीतिक नजरिए से रूस का ही हिस्सा है। रूस चाहता है कि पूर्वी यूरोप में नाटो अपना विस्तार बंद करे। पुतिन यूक्रेन के नाटो में शामिल न होने की गारंटी मांग रहे हैं। वह कह चुके, ‘हमें कोई बात नहीं करनी, हमें गारंटी चाहिए तुरंत। क्या हम अमेरिकी बॉर्डर पर मिसाइलें तैनात कर रहे हैं? नहीं, हम नहीं कर रहे, बल्कि वे हमारे घर आए और हमारी दहलीज पर मिसाइलें खड़ी कर दीं।’ पुतिन चाहते हैं कि पूर्वी यूरोप में नाटो अपने विस्तार को 1997 के स्तर पर ले जाए और रूस के आसपास हथियारों की तैनाती बंद करे। रूस ने उन 14 देशों को नाटो का सदस्य बनाने को भी चुनौती दी है जो वार्सा संधि का हिस्सा थे। 1955 में नाटो के जवाब में वार्सा संधि हुई थी, जिसका मकसद सभी सदस्य देशों को सैन्य सुरक्षा मुहैया कराना था। हालांकि, सोवियत संघ के टूटने के बाद इस संधि का बहुत ज्यादा मतलब नहीं रह गया।

नाटो के करीब क्यों जाना चाहता है यूक्रेन?

1917 से पहले रूस और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे। रूसी क्रांति के बाद जब साम्राज्य बिखरा तो यूक्रेन ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया, लेकिन कुछ सालों बाद वह सोवियत संघ में शामिल हो गया। 1991 में यूक्रेन को आजादी मिली। यूक्रेन के दो हिस्से हैं, पहला पूर्वी और दूसरा पश्चिमी। पूर्वी यूक्रेन के लोग खुद को रूस के करीब मानते हैं तो पश्चिमी यूक्रेन के लिए यूरोपियन यूनियन करीब है। पूर्वी यूक्रेन के कई इलाकों पर रूस समर्थित अलगाववादियों का कब्जा है। यहीं के डोनेट्स्क और लुहांस्क को भी रूस ने अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी है। 2014 में रूस ने हमला कर क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया था। यूक्रेन कह चुका है कि हम नाटो के करीब जाएं तो रूस को अड़ंगा डालने का हक नहीं। लेकिन रूस यूक्रेन पर हर तरह के दबाव डाल रहा है।

यूक्रेन-रूस संकट में कौन देश किसके साथ खड़ा है?

भारत : भारत अमेरिका और रूस दोनों के करीब है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसका समर्थन करे, लेकिन भारत की रणनीतिक साझेदारी रूस के साथ बहुत अधिक है। इधर, चीन के साथ सीमा पर तनाव के बीच भी भारत के लिए रूस का समर्थन जरूरी है। ऐसे में भारत के लिए किसी एक का पक्ष लेना बेहद मुश्किल होगा।

यूरोपियन यूनियन : यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल ने यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाते हुए कहा था कि यूक्रेन के खिलाफ खतरा पूरे यूरोप के लिए खतरा है। ईयू ने रूसी बैंकों और ईयू के वित्तीय बाजारों तक रूस की पहुंच पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही ईयू उन रूसी सांसदों को निशाना बनाने की भी तैयारी कर रहा है जो यूक्रेन पर रूस के पक्ष पर सहमत हैं।

ब्रिटेन : ब्रिटेन का कहना है कि रूस का यूक्रेन पर हमला शुरू हो चुका है और इसे देखते हुए रूस पर प्रतिबंध और कड़े किए जाएंगे। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि ये बेहद खतरनाक संकेत है और रूस के कदम से यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन होगा।

चीन : हाल के दिनों में रूस और चीन के बीच की नजदीकी बढ़ी है और अमेरिका के साथ चीन के रिश्ते खराब स्थिति में पहुंच चुके हैं। कुछ समय पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रूस की सुरक्षा चिंताओं को जायज बताते हुए कहा था कि इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसका समाधान होना चाहिए।

फ्रांस : रूस के यूक्रेन के दो क्षेत्रों को स्वतंत्र प्रदेश की मान्यता देने को फ्रांस ने पुतिन का ‘पागलपन’ करार दिया है। फ्रांस ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से जो वादा किया था, उसे तोड़ दिया और अब फ्रांस रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाएगा।

जर्मनी : जर्मनी ने रूस की नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को बंद कर दिया है। रूस इस परियोजना के जरिए जर्मनी को गैस पहुंचाने वाला था। जर्मनी ने कहा है कि रूस के हालिया कदम को लेकर ये फैसला किया गया है। जर्मनी शुरू से ही यूक्रेन के पक्ष में खड़ा रहा है।

बेलारूस : बेलारूस रूस का बेहद करीबी सहयोगी रहा है। ऐसे वक्त में जब रूस:यूक्रेन का तनाव चरम पर है, बेलारूस रूस के साथ मिलकर मिलिट्री एक्सरसाइज कर रहा है। 10 फरवरी को शुरू हुआ मिलिट्री एक्सरसाइज 20 फरवरी को खत्म होने वाला था लेकिन अब उसे फिर से बढ़ा दिया गया है और दोनों देशों की सेनाएं यूक्रेन की सीमा के पास मिलिट्री एक्सरसाइज कर रही हैं।

इटली : इटली का इस मुद्दे पर कहना है कि वो समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है। साथ ही इटली ने कहा है कि वो नाटो को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं को बरकरार रखेगा।

क्रोएशिया : क्रोएशिया ने भी इस मुद्दे पर दबी जुबान ने रूस का पक्ष लिया है। क्रोएशिया का कहना है कि रूस की सुरक्षा चिंताओं पर सोचने की जरूरत है। कुछ समय पहले क्रोएशिया के राष्ट्रपति जोरान मिलानोविक ने कहा था कि अगर रूस के साथ विवाद बढ़ा तो वो दुनिया के सबसे भ्रष्ट देश यूक्रेन के साथ नहीं, बल्कि रूस का साथ देंगे।

जापान : जापान ने कहा है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो वो अमेरिका का साथ देगा। प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने रूस के हालिया कदम की निंदा करते हुए कहा है कि ये अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन है. रूस ने यूक्रेन के दोनेट्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र प्रदेश की मान्यता दी है।

मध्य-पूर्व के देश : अगर रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध बढ़ा तो मध्य:पूर्व के सभी देशों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। इन देशों में महंगाई बढ़ेगी जिससे देशों में तनाव और हिंसा बढ़ने की आशंका है। इससे राजनीतिक अस्थिरता भी आ सकती है। नाटो का सदस्य तुर्की रूस के भी करीब रहा है। हालांकि, राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने रूस के हालिया कदम को अस्वीकार्य बताया है। वहीं, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों की नजदीकी अमेरिका से बढ़ी है, लेकिन रूस के साथ भी इनके संबंध अच्छे हैं। इसलिए इन देशों को किसी एक का पक्ष लेने में मुश्किल होगी।

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