Indian News : New Delhi | सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी संपत्ति का मालिकाना हक तब तक ट्रांसफर नहीं हो सकता है जब तक कि बिक्री विलेख का पंजीकरण न हो जाए। कोर्ट ने यह फैसला 1882 के ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 54 के तहत दिया, जिसमें कहा गया कि 100 रुपये या उससे अधिक की संपत्ति का विक्रय केवल पंजीकृत दस्तावेज़ से ही मान्य होगा।
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कब्जा या भुगतान से नहीं होता ट्रांसफर : सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी संपत्ति का कब्जा लेने या भुगतान करने से मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं होता। इसका मतलब है कि केवल संपत्ति की कीमत चुकता करने या उसे कब्जे में लेने से उसका मालिकाना हक नहीं बदलेगा। इसके लिए आवश्यक है कि बिक्री विलेख का पंजीकरण किया जाए।
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नीलामी के मामले में कोर्ट का फैसला : यह फैसला एक नीलामी खरीददार के पक्ष में आया है, जिसने संपत्ति के एक हिस्से पर कब्जा होने का दावा किया था, लेकिन यह दावा बिना पंजीकृत ‘एग्रीमेंट टू सेल’ और सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी पर आधारित था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आपत्ति को खारिज कर दिया, जिससे यह साफ हो गया कि बिना पंजीकृत दस्तावेज़ के संपत्ति का मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं हो सकता।
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संपत्ति खरीदने में पावर ऑफ अटॉर्नी का मुद्दा : सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उन मामलों में महत्वपूर्ण साबित होगा, जहां लोग प्रॉपर्टी डीलर या बिचौलिए के जरिए पावर ऑफ अटॉर्नी और विल के आधार पर संपत्ति खरीद लेते हैं। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि बिना पंजीकरण के संपत्ति का ट्रांसफर वैध नहीं होगा।
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अगली सुनवाई में अहम मुद्दे पर चर्चा : सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला अदालत की राय और विधायिका के कानून बनाने की शक्ति से जुड़ा हुआ है। इस मामले की अगली सुनवाई 4 फरवरी को होगी, जिसमें कोर्ट यह तय करेगा कि कौन सा दृष्टिकोण सर्वोच्च है।
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