Indian News : दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 239 के तहत ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि चार्जशीट में पुलिस पर्याप्त सबूत प्रस्तुत नहीं करती तो आरोपी को बिना ट्रायल के मुक्त किया जा सकता है

लेकिन यदि पुलिस चार्जशीट में पुख्ता सबूत (घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग) प्रस्तुत करती है तो क्या बिना ट्रायल के आरोपी को सजा दी जा सकती है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 240 की परिभाषा




ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस द्वारा अपनी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट (चार्ज शीट/ चालान) प्रस्तुत की जाती है। पुलिस चालान में कितने भी पुख्ता सबूत क्यों ना हो सीआरपीसी की धारा 240 के तहत मजिस्ट्रेट उस रिपोर्ट के आधार पर आरोपी की परीक्षा करेगा एवं आरोपी को प्रतिरक्षा के लिए मौखिक एवं लिखित साक्ष्य भी मांगेगा इसके बाद अगर आरोपी यह सिद्ध नहीं कर पाता कि उस पर लगाए गए आरोप गलत है तब न्यायिक मजिस्ट्रेट आरोपों को विरचित करेगा एवं आरोपी को लगाए गए आरोपों को पढ़कर सुनाया।

यदि आरोपी, पुलिस की इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट का खंडन करता है तो मामले को विचारण के लिए न्यायालय की कार्यवाही में शामिल कर लिया जाएगा।

अर्थात सीआरपीसी की धारा 240, आरोपी को हर हाल में अपनी निष्पक्षता साबित करने का अवसर देती है, फिर चाहे पुलिस ने उसके खिलाफ कितने ही अकाट्य और प्रमाणित सबूत प्रस्तुत क्यों ना किया हो।

You cannot copy content of this page