Indian News : लूडो के नाम से कनफ्यूज़ मत होइए, इस खेल को कहीं बाहर से भारत में नहीं लाया गया है बल्कि ये हमारे देश का ही खेल. इसका उल्लेख पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. हालांकि बहुत से पश्चिमी देशों का दावा है कि उन्होंने इसे इंट्रोड्यूस किया, लेकिन असल लूडो अलग-अलग नामों से हमेशा भारत में खेला जाता रहा है.
महाभारत काल में आपने उस चौपड़ के खेल का नाम सुना होगा, जिसमें पांडव हारकर दास बन गए थे. ये खेल भी लूडो ही था, जो पासों की मदद से खेला जाता था. तब इसे पच्चीसी या चौपड़ कहा जाता था. इतना ही नहीं भगवान कृष्ण और माता पार्वती और महादेव के भी इस खेल को खेलने का दावा किया गया है.
लूडो को पुराने ज़माने में पच्चीसी, चौपड़, चौसर, पगड़े, दायकटम, सोकटम और वर्जेस जैसे नामों से जाना जाता रहा है. वैसे तो इसमें 4 खिलाड़ी होते हैं लेकिन बताते हैं कि 19वीं सदी में मैसूर के राजा कृष्णराज वोडियार ने इसे 6 खिलाड़ियों वाला बना दिया था.
इतिहास में जाएं तो 16वीं सदी में इसका ज़िक्र राजा अकबर के दरबार में मिलता है. जहां पच्चीसी को पासे की जगह इंसानों का इस्तेमाल करके खेला जाता था. पच्चीसी को अलग-अलग तरीके से खेला जाता रहा है और उसका उल्लेख इतिहास में मिलता है.
आधुनिक लूडो की संरचना का पेटेंट साल 1896 में अल्फ्रेड कोलियार नाम के ब्रिटिश व्यक्ति ने कराया था. उसने भारत के सभी प्राचीन बोर्ड गेम्स को समझने के बाद इस डिजाइन को बनाया. सिर्फ इसमें डाइस और कप जोड़ा गया था.
आपको शायद ही पता होगा कि लूडो के डाइस में आमने-सामने रहने वाले सभी नंबरों का जोड़ हमेशा 7 ही होता है. जैसे 1 के पीछे 6 मिलकर 7 बनते हैं. 4 के पीछे 3 मिलकर 7 बनते हैं और 5 के पीछे 2 मिलकर भी 7 बनते हैं.
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