Indian News : नई दिल्‍ली | भारतीय रेलवे की कई ऐसी रहस्‍यमयी बातें हैं जो आम आदमी को नहीं पता. ऐसी ही एक राज की बात है स्‍टेशंस के पीछे रोड लिखा होना. हजारीबाग रोड, रांची रोड और आबू रोड जैसे देश में दर्जनों रेलवे स्‍टेशन हैं जिनके नाम के पीछे रोड शब्‍द जुड़ा हुआ है. अमूमन तो यही लगता होगा कि यह बस किसी रेलवे स्‍टेशन का नाम है, लेकिन इसके पीछे रेलवे का बड़ा मकसद होता है. रेलवे ऐसा अपने यात्रियों की सुविधा के लिए करता है. उसका मकसद अपने यात्रियों को खास जगह का रास्‍ता बताना होता है.

रेलवे ने इन स्‍टेशनों के नाम के पीछे रोड शब्‍द का इस्‍तेमाल यात्रियों को एक खास जानकारी देने के लिए किया है. वह जानकारी यह है कि जिस रेलवे स्‍टेशन के नाम के पीछे रोड शब्‍द लगा है, वह शहर से दूर है. यानी आपको रोड (सड़क) से होते हुए उस शहर तक जाना होगा. रेलगाड़ी आपको शहर से कुछ दूरी पर उतारती है. कौरा (Quora) पर एक सवाल के जवाब में भारतीय रेल में प्रधान मुख्य प्रशासनिक अधिकारी अनिमेष कुमार सिन्हा ने बताया, ‘रेलवे स्टेशन के साथ ‘रोड’ शब्द का जुड़ा होना यह इंगित करता है कि उस स्थान पर जाने के लिए उस रेलवे स्टेशन से एक रोड जाती है और उस शहर को जानेवाले रेल यात्री वहीं उतरें.’

रोड नाम वाले स्टेशन से शहर की दूरी 2-3 किलोमीटर से लेकर 100 किलोमीटर तक भी हो सकती है. जैसे वसई रोड रेलवे स्टेशन से वसई 2 किलोमीटर है, तो कोडाईकनाल रोड से कोडाईकनाल शहर की दूरी 79 किलोमीटर है. हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन से हजारीबाग शहर 66 किलोमीटर दूर पड़ता है तो रांची रोड रेलवे स्टेशन से रांची शहर 49 किलोमीटर. इसी तरह आबू रोड रेलवे स्टेशन से आबू 27 किलोमीटर तो जंगीपुर रोड रेलवे स्टेशन से जंगीपुर शहर 7.5 किमी की दूरी पर है.हालांकि, बहुत से ऐसे रेलवे स्‍टेशनों के आसपास भी अब काफी आबादी बसने लगी है. लेकिन, जिस वक्‍त ये रेलवे स्‍टेशन बने थे, तब वहां कोई नहीं बसता था.




क्‍यों ये रेलवे स्‍टेशन बने हैं शहर से दूर


कुछ शहरों तक रेलवे लाइन बिछाने में कोई बड़ी बाधा आने पर ही इन शहरों से दूर रेलवे स्‍टेशन बनाए गए. जैसे माउंट आबू पहाड़ पर रेलवे लाइन बिछाना अत्यंत ही खर्चीला था, तो आबू से 27 किलोमीटर दूर पहाड़ से नीचे रेलवे स्‍टेशन बनाया गया.

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