Indian News : नई दिल्ली | मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता में आते ही 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का अचानक एलान कर दिया था, जिसके बाद लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ी थी। अब साल 2022 में फिर एक बाद इस पर चर्चा है। वजह है सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के खिलाफ दाखिल की गई याचिका। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामलें में सुनवाई करते हुए कहा है कि उन्हें लक्ष्मण रेखा पता है।
शीर्ष अदालत ने साथ ही कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें रेफर किए गए हैं उसका वह जवाब दे। सुप्रीम कोर्ट इस फैसले का परीक्षण करेगा ताकि पता चले कि यह केवल एकेडमिक बहस तो नही था? मामले की अगली सुनवाई 9 नवंबर को होगी।
नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई से हलफनामा के जरिए जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के सीनियर एडवोकेट और दो बार से ज्यादा वित्त मंत्री के पद पर रहे पी. चिदंबरम ने दलील दी कि केंद्र का आरबीआई को इस बारे में लिखे लेटर, आरबीआई की सिफारिश आदि से संबंधित दस्तावेज मांगा जाए। साथ ही कहा कि आरबीआई एक्ट के तहत केंद्र सरकार को पूरे करेंसी नोट रद्द करने का अधिकार नहीं है। इस दलील के मद्देनजर हलफनामा पेश करने को कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह हलफनामा दायर कर जरूरी दस्तावेज के बारे में भी जानकारी मुहैया कराए। कोर्ट ने कहा कि वह आरबीआई के बोर्ड मीटिंग के दस्तावेज देखना चाहेगी जो नोटबंदी से पहले हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अपनी लक्ष्मण रेखा जानते हैं। सरकार के नीतिगत फैसले के मामले में ज्यूडिशियल रिव्यू का दायरा क्या है यानी उनकी लक्ष्मण रेखा क्या है उससे वह अवगत हैं।
नोटबंदी के खिलाफ डायचार याचिका मामलें में जस्टिस इस. अब्दुल नजीर अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने कहा कि जब कोई मामला संविधान पीठ के समक्ष लाया जाता है, तो उसका जवाब देना पीठ का दायित्व बन जाता है। संविधान पीठ में जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रमासुब्रमण्यम और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना भी शामिल थे।
मामले की सुनवाई के दौरान याची के वकील पी. चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी के कारण लोगों का जीवनयापन का जरिया जाता रहा। लोगों की नौकरी चली गई और लोग बेरोजगार हो गए। अगर नोटबंदी करना था तो बैकअप में कैश होना चाहिए था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को भारी कठिनाई हुई है और यह हम देख रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट को चिदंबरम ने कहा कि क्या इस फैसले के लिए विवेक का इस्तेमाल किया गया? क्या यह अपनी मर्जी का फैसला नहीं था? दस्तावेज का अवलोकन होना चाहिए। सरकार ने जो आरबीआई को एडवाइस किया उससे संबंधित दस्तावेज देखे जाएं। केंद्र सरकार का आरबीआई को लिखा लेटर, आरबीआई की सिफारिश आदि से संबधित दस्तावेज देखा जाए। आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2) के तहत केंद्र नोट की कुछ सीरीज को रद्द कर सकती है पूरे करेंसी को नहीं। आरबीआई के बोर्ड की बैठक के दस्तावेज भी मांगे जाए। संसद में भी यह दस्तावेज नहीं दिखाए गए। सुप्रीम कोर्ट शीर्ष अदालत है यहां देखा जाए।
पिछली सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने कहा था कि वह मामले की सुनवाई के दौरान पहले यह देखेगा कि यह मामला क्या अब सिर्फ एकेडमिक बहस के लिए रह गया है? याची ने लगातार दलील दी कि यह मामला सिर्फ एकेडमिक नहीं है। लेकिन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने केंद्र सरकार की ओर से कहा कि यह मामला सिर्फ एकेडमिक है। लेकिन याची ने कहा कि केंद्र सरकार का फैसला अभी भी चुनौती के लिए ओपन है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसए नजीर की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने नोटबंदी को चुनौती देते हुए 58 अर्जी दाखिल की गई है जिस पर सुनवाई शुरू हुई। केंद्र सरकार के 500 और 1000 के नोट बंद किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। मामले को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था।
नोटबंदी के बाद कई मामले देश भर की अदालतों में आ गए थे। तब तब सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की अदालतों में पेंडिंग तमाम नोटबंदी मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी थी और मामले को पांच को रेफर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की बेंच ने 9 सवाल तैयार किए थे जिन्हें पांच जजों की बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेजा गया था।
-क्या नोटबंदी का 8 नवंबर का नोटिफिकेशन और उसके बाद का नोटिफिकेशन असंवैधानिक है? | क्या नोटबंदी संविधान के अनुच्छेद-300 (ए ) यानी संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है। नोटबंदी का फैसला क्या आरबीआई की धारा-26 (2) के तहत अधिकार से बाहर का फैसला है।
-क्या नोटबंदी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। मसलन संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता के अधिकार और अनुच्छेद-19 यानी आजादी के अधिकारों का उल्लंघन है? | क्या नोटबंदी के फैसले को बिना तैयारी के लागू किया गया। करंसी का इंतजाम नहीं था और कैश लोगों तक पहुंचाने का इंतजाम नहीं है? | क्या सरकार की इकोनॉमिक पॉलिसी के खिलाफ अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है।
-बैंकों और एटीएम में पैसा निकासी का लिमिट तय करना लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है। डिस्ट्रिक्ट सहकारी बैंकों में पुराने नोट जमा करने और नए नोट निकालने पर रोक सही नहीं है