Indian News : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि यदि पत्नी इस तथ्य के कारण अपना वैवाहिक घर छोड़ देती है कि उसके पति ने दूसरी महिला (उपपत्नी) को अपने साथ रख लिया है और उसे (पत्नी) शारीरिक और मानसिक यातना देता है तो इसे पत्नी की ओर से परित्याग के रूप में नहीं माना जा सकता है। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की खंडपीठ ने इस अवलोकन के साथ फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति/अपीलकर्ता की तरफ से दायर अपील खारिज कर दी। फैमिली कोर्ट ने पति की तरफ से दायर उस वाद को खारिज कर दिया था,जिसमें उसने परित्याग के आधार पर तलाक की डिक्री दिए जाने की मांग की थी।
संक्षेप में मामला अपीलकर्ता/पति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक की डिक्री के लिए एक वाद दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि उसने प्रतिवादी/पत्नी से 26-27 साल पहले हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी और उसके अनुसार, पिछले लगभग 25 वर्षों से, उसकी पत्नी ने उसका परित्याग कर रखा है और वह अलग रह रही है। दूसरी ओर प्रतिवादी/पत्नी ने वादी की दलीलों का खंडन किया और बताया कि उसके पति (अपीलार्थी) ने एक महिला को अपनी पत्नी के रूप में रखा है और उसे अपने पैतृक गांव में रहने के लिए कहा था। इस वजह से और उसके अत्याचारपूर्ण कृत्यों के कारण, उसे मजबूरन अपने पैतृक गांव में रहना पड़ा।
पक्षकारों को सुनने के बाद तथा दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों पर विचार करने के बाद फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता/पति द्वारा दायर वाद को खारिज कर दिया था। इसलिए, उसने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान अपील दायर की। न्यायालय की टिप्पणियां, हाईकोर्ट ने पति/अपीलकर्ता द्वारा जिरह के दौरान स्वीकार किए गए उन तथ्यों को ध्यान में रखा ,जिसमें उसने माना है कि उसकी तीन बेटियां है और प्रतिवादी उनकी मां है। न्यायालय ने कहा, इन परिस्थितियों में पत्नी द्वारा पिछले 25 वर्षों से परित्याग करने का प्रश्न पूरी तरह से गलत प्रतीत होता है।
अदालत ने कहा, ”जब 26-27 साल पहले दोनों पक्षों के बीच शादी हुई और उसके बाद तीन बच्चे पैदा हुए तो यह कैसे माना जा सकता है कि पत्नी पिछले लगभग 25 साल से यानी शादी के तुरंत बाद पति को छोड़ चुकी है।” इसके अलावा, यह देखते हुए कि अपीलकर्ता ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उसने एक महिला को दूसरी पत्नी के रूप में रखा है और उस रिश्ते से उसके दो बच्चे भी हैैं, कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी के साथ विवाह के दौरान, अपीलकर्ता ने एक अन्य महिला को अपनी पत्नी के रूप में रखा हुआ है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार पहली शादी के दौरान दूसरी महिला को रखना अवैध है, हालांकि, कोर्ट ने दूसरी महिला के स्टे्टस पर विचार-विमर्श नहीं करने का फैसला किया। इसलिए मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने माना कि पत्नी की ओर से कोई परित्याग नहीं किया गया। कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से यह भी कहा कि ”साक्ष्य बताते हैं कि अपीलकर्ता ने एक महिला को उपपत्नी के रूप में रखा हुआ है और प्रतिवादी के साथ शारीरिक और मानसिक क्रूरता की गई। उसके बाद, उसे अपना वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, इसलिए प्रतिवादी / पत्नी के पास अपने माता-पिता के साथ गांव में रहने के लिए उचित कारण था। हालांकि ऐसा करने का उसका कोई इरादा नहीं था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पत्नी द्वारा परित्याग किया गया । यदि पति किसी अन्य महिला को रखता है, उसे आश्रय देता है, और उक्त महिला से उसके बच्चेे पैदा होते हैं और इस कारण से अगर पहली पत्नी को दी गई शारीरिक और मानसिक यातना के कारण वह अपना वैवाहिक घर छोड़ देती है तो इसे पत्नी की ओर से परित्याग के रूप में नहीं माना जा सकता।” इसके साथ ही कोर्ट ने पति की अपील खारिज कर दी।