Indian News : समुद्री डाकुओं पर बनी फ़िल्म ‘पायरेट्स ऑफ़ द कैरेबियन (Pirates of the Caribbean)’,  ‘कैप्टन फिलिप्स (Captain Phillips)’,  ‘अ हाईजैकिंग (A Hijacking)’ ‘कैप्टन ब्लड (Captain Blood)’ आज भी लोगों के जेहन में ताजा है.   ‘पायरेट्स ऑफ़ द कैरेबियन’ में कप्तान जैक स्पैरो की तस्वीर ये बताने के लिए काफी है कि समुद्री लुटेरे  कितने खूंखार होते हैं.  

भारत भी इन समुद्री लुटेरों की वजह से बीते कई सालों से परेशान रहता था. खुले समंदर में होने वाले अपराधों और समुद्री लुटेरों से निपटने के लिए भारत में अलग से कोई कानून नहीं था. अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र (High Seas) या खुले समंदर में पायरेसी के खिलाफ कार्रवाई के लिए अब भारत के पास अपना कानून हो गया है.

मैरीटाइम एंटी पायरेसी बिल ( Maritime Anti Piracy Bill) या समुद्री जलदस्युता रोधी बिल को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई है.  लोकसभा से मैरीटाइम एंटी पायरेसी बिल 2019 इस साल 19 दिसंबर को पारित हो गया. राज्य सभा से इसे 21 दिसंबर को पारित किया गया. राज्यसभा में आने पर इस बिल का नाम एंटी मैरीटाइम पायरेसी बिल 2022 हो गया. बिल पर राष्ट्रपति के हस्तक्षार होते ही ये कानून का रूप ले लेगा. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोनों सदनों में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि आईपीसी और सीआरपीसी में समुद्री क्षेत्र में जलदस्युओं से होने वाली समस्या से निपटने के लिए कोई प्रावधान नहीं था. इसलिए सरकार इस बिल को लेकर आई.




भारत में लंबे वक्त से इस तरह के कानून की जरुरत महसूस की जा रही थी. एंटी मैरीटाइम पायरेसी बिल 2019 सबसे पहले 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था. इसमें मैरीटाइम पायरेसी को रोकने और ऐसे अपराधों में शामिल समुद्री डाकुओं पर मुकदमा चलाने का प्रावधान किया गया. ये कानून भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन और उसके बाद के समंदर के सभी हिस्सों पर भी  लागू होगी.  2019 में लोकसभा में पेश होने के बाद इस बिल को विदेशी मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था. स्थायी समिति ने फरवरी 2021 में अपनी रिपोर्ट दी. बाद में स्थायी समिति की ज्यादातर सिफारिशों को बिल में शामिल किया गया. 

मैरीटाइम एंटी पायरेसी कानून की खासियत

मैरीटाइम एंटी पायरेसी कानून समुद्री डकैती या पायरेसी रोकने और पायरेसी का अपराध करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान करता है. 

भारत का कानून अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र (high seas) पर  लागू होगा. इसमें एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन(EEZ) के साथ ही  किसी दूसरे देश के क्षेत्राधिकार से परे सभी जल सीमा क्षेत्र शामिल हैं. पहले इसमें ईईजेड को शामिल नहीं किया गया था. बाद में स्थायी समिति की सिफारिशों के बाद कानून के दायरे में ईईजेड को भी शामिल किया गया.

समुद्री डकैती के अपराध में शामिल लोगों के लिए सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है. इसके लिए उम्रकैद और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान किया गया है. अगर पायरेसी के कारण किसी की हत्या या मौत हो जाती है तो ऐसे मामलों में उम्रकैद या फांसी की सज़ा हो सकती है. पहले पायरेसी के कारण किसी की हत्या या मौत होने पर फांसी की सज़ा का ही प्रावधान था, लेकिन संसद की स्थायी समिति ने इसमें बदलाव करने की सिफारिश की. समिति का कहना था कि जिन देशों में मृत्यु दंड नहीं हैं, वैसे देश ऐसे अपराधी को भारत प्रत्यर्पित करने में कम रुचि दिखाते हैं. इस सिफारिश को ध्यान में रखकर सरकार ने मुत्यु के साथ उम्रकैद को भी जोड़ दिया.  

पायरेसी की कोशिश करने या उसमें मदद पहुंचाने पर भी अधिकतम 10 साल या जुर्माने की सज़ा हो सकती है. ऐसे मामलों में कारावास और जुर्माना, दोनों प्रकार की सज़ा भी हो सकती है. 

 समुद्री डकैती के अपराध में हिस्सा लेने, उसकी योजना बनाने या दूसरों को ऐसा करने के लिए उकसाने पर अधिकतम 14 साल या जुर्माने की सज़ा हो सकती है. ऐसे मामलों में कारावास और जुर्माना, दोनों प्रकार की सज़ा भी हो सकती है.  

भारतीय कानून में संदेह के आधार पर पायरेट जहाज या एयरक्राफ्ट की जब्ती (seizure) और  गिरफ्तारी का भी प्रवाधान किया गया है. सिर्फ ऑथराइज़्ड  शख्स ही गिरफ्तारी और जब्ती कर सकते हैं. इनमें भारतीय नौसेना के युद्धपोत या सैन्य एयरक्राफ्ट के अधिकारी और नाविक शामिल हैं. तटरक्षक बल (Coast Guard) के ऑफिसर को भी ये अधिकार दिया गया है.

कानून में व्यवस्था की गई है कि सिर्फ अदालत के आदेश के बाद ही जब्त किए गए जहाज या संपत्ति का निपटारा किया जाएगा. ऑरिजिनल बिल में ये प्रावधान नहीं था. संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के बाद इसे जोड़ा गया.   

केंद्र सरकार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के सलाह के बाद ये फैसला करेगी कि अमुक समुद्री डकैती से जुड़े मामले किस अदालत के क्षेत्राधिकार में आएंगे (Jurisdiction of Designated Court). ऐसा करते वक्त ये ध्यान में रखा जाएगा कि संदिग्ध या आरोपी व्यक्ति भारत के किस बंदरगाह (port) या जगह पर उतरा है. ऐसे मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाए जाएंगे. इस कानून के तहत अपराधों को प्रत्यर्पण योग्य बनाया गया है. 

ऑरिजिनल बिल में ये प्रावधान किया गया था कि आरोपी व्यक्ति के अदालत में गैर मौजूदगी के बावजूद उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है. संसद की स्थायी समिति ने इस प्रावधान को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन मानते हुए इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत माना. इसके बाद सरकार ने इस प्रावधान को हटा दिया. 

भारतीय कानून में पायरेसी का मतलब भी बताया गया है. इसके मुताबिक किसी निजी जहाज या एयरक्राफ्ट के चालक दल, यात्रियों के साथ ही अन्य व्यक्ति जब निजी मकसद से किसी जहाज, एयरक्राफ्ट, व्यक्ति या संपत्ति के खिलाफ हिंसा, उन्हें बंधक बनाने या नष्ट करने की गैरकानूनी कार्रवाई करता है, तो इसे पायरेसी माना जाएगा. 

विदेशी मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के बाद इस कानून में जहाज (ship)की परिभाषा को भी शामिल किया गया. इसके मुताबिक वेसल या वॉटर क्राफ्ट (vessel or water craft), के साथ ही जल परिवहन के साधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले सीप्लेन्स (seaplanes) और  दूसरे एयरक्राफ्ट जहाज माने जाएंगे. एंटी-मैरीटाइम पाइरेसी कानून  विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के साथ ही उसके बाद के हिस्सों में भी समुद्री अपराधों से निपटने के लिए एक प्रभावी कानून है. 

एंटी मैरीटाइम पायरेसी कानून की जरुरत क्यों?

भारत के पास एंटी मैरीटाइम पायरेसी के मामले में कार्रवाई के लिए कोई घरेलू कानून नहीं था. अब तक पायरेसी पर मुकदमा चलाने के लिए आईपीसी (IPC) के डकैती संबंधी प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि भारत का ये कानून सिर्फ देश के प्रादेशिक जल सीमा (12 नॉटिकल मील) तक ही लागू होता था.  इससे आगे की समुद्री सीमा में किसी विदेशी की ओर से पायरेसी करने पर ये  आईपीसी के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता था. इस वजह से ऐसे कई मामलों में आरोपी इस आधार पर बरी हो जाते थे कि उस शख्स पर मुकदमा चलाना भारत के न्याय क्षेत्र में नहीं आता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए ठोस पहल 1982 में हुई.

इसे हम United Nations Convention on the Law of the Sea या  UNCLOS के नाम से जानते हैं.  संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि के जरिए  दुनिया के सागरों और महासागरों पर अलग-अलग देशों के अधिकार और जिम्मेदारियां तय की गई हैं. इस संधि में ही मैरीटाइम पायरेसी को परिभाषित किया गया है. भारत ने इस संधि को 1995 में मंजूरी दी. अप्रैल 2012 में पायरेसी बिल लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन 15वीं लोकसभा के भंग होने के बाद ये बिल खुद ही लैप्स हो गया.  UNCLOS के जरिए पायरेसी के खिलाफ एकसमान अंतरराष्ट्रीय कानूनी संरचना की व्यवस्था की गई है. अब एंटी मैरीटाइम पायरेसी कानून होने से भारत UNCLOS के तहत घरेलू कानून वाला देश बन जाएगा.

समंदर में कई तरह के अधिकार क्षेत्र हैं

आम तौर पर किसी भी देश के लिए तीन तरह की समुद्री सीमा ख़ास होती है. पहला प्रादेशिक समुद्री सीमा (Territorial Sea), दूसरा कन्टिग्यूअस जोन (Contiguous Zone) और तीसरा  एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (EEZ). 1982 के संयुक्त राष्ट्र संधि के मुताबिक हर देश की प्रादेशिक जल सीमा उसके तट से 12 नॉटिकल मील (22किमी) तक होती है. एक नॉटिकल मील में 1.852 किमी होता है.  प्रादेशिक जल सीमा पर उस देश का पूरा अधिकार होता है.  Contiguous Zone का नंबर इसके बाद आता है. ये किसी भी देश के तट से 24 नॉटिकल मील (44 किमी) तक आता है. इस सीमा के तहत किसी देश को कस्टम से जुड़े किसी प्रकार के उल्लंघन की हालत में कार्रवाई करने और सज़ा देने का अधिकार होता है. सबसे महत्वपूर्ण है एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (EEZ).ये प्रादेशिक समुद्री सीमा खत्म होने से यानी 12 नॉटिकल मील से  200 नॉटिकल मील (370 किमी) तक का क्षेत्र होता है. ईईजेड के भीतर किसी भी देश को मछली पालन और आर्टिफिशियल द्वीप बनाने का अधिकार होता है. इसके साथ ही लहरों से उर्जा पैदा करने और विदेशी जहाजों की ओर से किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों को रेग्युलेट करने का अधिकार होता है. इस जोन से विदेशी जहाज गुजरने के लिए स्वतंत्र होते हैं.  

समुद्री सुरक्षा से व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी.

एंटी मैरीटाइम पायरेसी कानून  से समंदर में होने वाले अपराधों से निपटना आसान होगा.  इससे समुद्री सुरक्षा बढ़ेगी और भारत के समुद्री व्यापार मार्ग ज्यादा सुरक्षित हो जाएंगे.  समुद्री सुरक्षा बढ़ने से व्यापार में इजाफा होगा. आर्थिक भलाई के नजरिए से भारत के समुद्री मार्गों की सुरक्षा बेहद जरूरी है.  दुनिया के साथ भारत का 90 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्ग से होता है. भारत के हाइड्रोकार्बन जरुरत का 80 प्रतिशत से ज्यादा समुद्र से ही पूरा हो पाता है. इस कानून से अंतरराष्ट्रीय जलमार्गों में भारत के जहाजों और नाविकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी.  अदन की खाड़ी में कोहराम मचाने वाले सोमालिया के खूंखार समुद्री लुटेरों पर कार्रवाई के नजरिए से ये कानून मील का पत्थर साबित होगा. 

अदन की खाड़ी है समुद्री लुटेरों का गढ़

भारतीय नौसेना अदन की खाड़ी (Gulf of Aden) में  पूरी मुस्तैदी से समुद्री डकैती को रोकने के अभियानों में 2008 से लगी है. अदन की खाड़ी सोमालिया और यमन के बीच लाल सागर के दक्षिणी सिरे के पास एक प्रमुख शिपिंग मार्ग है.  समुद्री डकैती की सबसे ज्यादा घटनाएं 2009 में हिन्द महासागर, लाल सागर और अदन की खाड़ी में दर्ज की गई.  2009 में इस तरह की 223 घटनाएं इन क्षेत्रों में हुई थी. 2009 में तो हालत इतने बुरे थे कि सोमालिया/ अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती की 217 घटनाएं हुई थी, जबकि दुनिया के बाकी हिस्सों में उस साल समुद्री डकैती की 189 घटनाएं हुई थी. अदन की खाड़ी एशिया, यूरोप और अफ्रीका के पूर्वी तटों पर व्यापार करने का एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है. इस रास्ते से हर महीने 2000 जहाजें गुजरती हैं.

सोमालिया के समुद्री लुटेरे  शिकार की तलाश में समुद्र तट से लगातार आगे बढ़ते गए हैं.  2004 में, अंतरराष्ट्रीय समुद्री बोर्ड (International Maritime Board) ने सभी जहाजों को चेतावनी दी थी कि सोमालिया तट के 50 नॉटिकल मील के भीतर जाने से बचें. 2005 में बोर्ड ने इस दूरी को बढ़ाकर 100 नॉटिकल मील कर दिया.  2006 तक, कुछ समुद्री लुटेरों के हमले सोमालिया तट से 350 नॉटिकल मील दूर तक हुए. इनमें हिंद महासागर, अदन की खाड़ी और लाल सागर के मुहाने पर होने वाले हमले शामिल हैं. 2007 और 2008 के बीच, समुद्री डकैती का मुख्य क्षेत्र दक्षिणी सोमालिया और मोगादिशु बंदरगाह से  हटकर अदन की खाड़ी में पहुंच गया.  2009 में पश्चिमी हिंद महासागर में सोमालिया के पूर्वी तट पर समुद्री हमलों की संख्या में भारी इजाफा हुआ. कुछ हमले सोमालिया के पूर्वी तट से 1,000 नॉटिकल मील दूर हुए. 

अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में व्यापार के लिए समुद्री डकैती सबसे बड़े खतरों में से एक है.  2020 में एशिया में समुद्री डकैती की 97 घटनाएं हुई थी. 2019 के मुकाबले 2020 में समुद्री डकैती की घटनाओं की संख्या दोगुनी थी. समंदरके लुटेरों से एशियाई देश खासकर दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देश सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. भारत भी इन्हीं देशों में शामिल है. 

समुद्री डकैती तस्करी का मुद्दा नहीं है. ये एक हिंसक और अधिग्रहण करने वाला अपराध है.  ये एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है क्योंकि समुद्र में किसी भी जहाज को जिसका वो झंडा लगाए हुए है, उस राष्ट्र का संप्रभु क्षेत्र (sovereign territory) माना जाता है. समुद्री डकैती एक संगठित (organized) अपराध है क्योंकि समुद्र में किसी जहाज पर कब्जा करने के लिए ख़ास योजना की जरुरत होती है और इसके लिए कुछ ख़ास एक्सपर्ट की भी जरुरत होती है. इस नजरिए के साथ ही 1982 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने संधि  में मैरीटाइम पायरेसी पर संरचनात्मक कानूनी ढांचा देने की पहल की. इस पहल के 40 साल बाद भारत में इस तरह का घरेलू कानून बन पाया है. इसके साथ ही भारत  घरेलू कानून बनाकर समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को लागू  करने वाला देश बन गया है. 

@indiannewsmpcg

Indian News

You cannot copy content of this page