Indian News : हिंदी सिनेमा में ऐसे कई हीरो हैं जिन्होंने अपने दम पर पहचान बनाई और सफलता बटोरी। लेकिन उस मुकाम तक पहुंचने से पहले पंकज त्रिपाठी को कई साल तक स्ट्रगल करना पड़ा था। पंकज त्रिपाठी भी बाकी लोगों की तरह आंखों में हीरो बनने का सपना लिए मुबंई पहुंचे थे। पर क्या पता था कि उन्हें लोगों के खूब उलाहने और बेइज्जती सहनी पड़ेगी। पंकज त्रिपाठी ने कड़े संघर्ष और मेहनत के बलबूते फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बना ली। आज पंकज त्रिपाठी की गिनती बॉलीवुड के सबसे ज्यादा डिमांड में रहने वाले एक्टर्स में होती है।

Pankaj Tripathi आज मुंबई में लैविश लाइफस्टाइल जीते हैं। उनका मुंबई में सी-फेसिंग अपार्टमेंट है। पर खूब पैसा कमाने और मुंबई में शानदार घर होने के बावजूद पंकज त्रिपाठी अपनी जड़ों, अपने गांव को नहीं भूले हैं।

दोस्तों संग पेड़ लगाना तो कभी उपलों पर लिट्टी-चोखा बनाना




पकंज त्रिपाठी हाल ही अपने बिजी शेड्यूल से तीन दिन का समय निकालकर छुट्टियां मनाने परिवार के साथ अपने गांव पहुंचे। पंकज त्रिपाठी का गांव बिहार के गोपालगंज में स्थित है। वो बेलसंड के रहने वाले हैं। पंकज त्रिपाठी को जब भी सुकून चाहिए होता है या मन उदास होता है तो वो अपना सामान उठाकर गांव पहुंच जाते हैं।

गांव में ऐसी जिंदगी जीते हैं पंकज त्रिपाठी

पंकज त्रिपाठी जब हाल ही अपने गांव बेलसंड पहुंचे तो उन्होंने गांववालों के साथ खूब मस्ती की, बोरवेल में नहाए। इतना ही नहीं उन्होंने घर और गांववालों के साथ मिलकर लिट्टी-चोखा भी बनाया। पंकज त्रिपाठी के इस ठेठ देसी अंदाज को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं। लिट्टी-चोखा बनाते हुए उनका वीडियो सोशल मीडिया पर छाया हुआ है।

पिता के साथ खेतों में किया काम


पंकज त्रिपाठी को अपने गांव से बेहद प्यार है। पंकज त्रिपाठी के लगभग हर इंटरव्यू, हर बातचीत में पुराने दिनों की झलक दिख ही जाती है। इसकी वजह भी वाजिब है। पंकज त्रिपाठी ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि वो एक्टर बन पाएंगे। वो जब गांव में थे तो 11वीं क्लास तक खेती-बाड़ी का ही काम किया था।

आज भी चूल्हे पर बनता है खाना

पंकज त्रिपाठी के पिता पंडित बनारस त्रिपाठी एक किसान हैं और खेती-बाड़ी करते हैं। वहीं उनकी मां घर-बार संभालती हैं। पंकज त्रिपाठी जब स्कूल में पढ़ते थे तो उन्होंने 11वीं क्लास तक पिता के साथ खेतों में खूब काम किया और हल चलाया था। पंकज त्रिपाठी जब भी गांव जाते हैं तो वहीं के रंग में रंग जाते हैं। पंकज त्रिपाठी कहते हैं कि उन्हें शहर से गांव आकर सुकून मिलता है। पंकज त्रिपाठी के गांव वाले घर में अभी भी चूल्हे पर ही खाना बनता है

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