Indian News : नई दिल्ली | 6 सितंबर दिन सोमवार से नवरात्रि प्रारंभ होगा. और इसका समापन 05 अक्टूबर को होगा. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-उपासना की जाती है. इसमें मां दुर्गा की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन के सारे दुख, दर्द दूर हो जाते हैं. दुर्गा पूजा या नवरात्रि, हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है.

यह त्योहार दुर्गा, देवी पार्वती के योद्धा रूप और दिव्य शक्ति, समृद्धि और राक्षसी शक्तियों के संहारक की देवी को समर्पित है. नवरात्रि नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों को समर्पित है. परंपरा और अनुष्ठान के अनुसार देवी दुर्गा की मूर्तियों की पूजा करके त्योहार मनाया जाता है. लेकिन इस पावन पर्व की बात कोलकाता की दुर्गा-पूजा के बिना अधूरी है। पूरे भारत में लोकप्रिय इस पूजा के लिए यहां विशेष मिट्टी से माता की मूर्तियों का निर्माण होता है और उस मिट्टी का नाम है ‘निषिद्धो पाली’।

उत्तर और पूर्व भारत में नवरात्रि नौ दिनों का त्यौहार होता है जबकि पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के आखिरी चार दिन दुर्गा पूजा की जाती है और यही उनका सबसे बड़ा पर्व होता है। दुर्गा पूजा के दौरान देवी मां की मूर्ति बनाई जाती है, जिसके लिए मिट्टी तवायफों के आंगन से लाई जाती है।




क्यों किया जाता है ऐसी परंपरा का पालन

मान्यता है कि जब एक महिला या कोई अन्‍य व्यक्ति वेश्यालय के द्वार पर खड़ा होता है तो अंदर जाने से पहले अपनी सारी पवित्रता और अच्छाई को वहीं छोड़कर प्रवेश करता है, इसी कारण यहां की मिट्टी पवित्र मानी जाती है। यही कारण है कि सेक्स वर्कर के घर के बाहर की मिट्टी को मूर्ति में लगाया जाता है।

कुछ पौराणिक कहानियों में जिक्र है कि प्राचीन काल में एक वेश्या मां दुर्गा की अन्नय भक्त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई। उसे वरदान दिया था कि उसके यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी।

मान्यताएं

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के लिए मां की जो मूर्ति बनती है उसके लिए 4 चीज़ें बहुत ज़रूरी होती हैं। पहली गंगा तट की मिट्टी, गौमूत्र, गोबर और वेश्यालय की मिट्टी या किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो। इन सभी को मिलाकर बनाई गई मूर्ति ही पूर्ण मानी जाती है। ये रिवाज दशकों से चला आ रहा है।

Disclaimer : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि Indian News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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