Indian News : नई दिल्ली : लग्जरी लाइफ जी रहे एक मुस्लिम शख्स को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कड़ी फटकार लगाई। दरअसल, उसने पहली पत्नी को हर महीने मिलने वाले गुजारा भत्ते को कम करने की गुहार लगाई थी, लेकिन उसे झटका लगा। पहली पत्नी को उसने 12 साल पहले तलाक दे दिया था। अब वह चाहता था कि मासिक गुजारा भत्ता 15,000 रुपये से घटाकर 10,000 कर दिया जाए और इसके लिए उसने तर्क रखा कि उसे अपनी दूसरी पत्नी और बच्चों की देखभाल करनी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस केस में भी सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक शाह बानो फैसले (Shah Bano Case) का जिक्र आया।

शाह बानो, इद्दत का जिक्र

शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि भले ही शरिया कानून के तहत मुस्लिम पुरुष पत्नी को केवल इद्दत पीरियड के दौरान ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है, लेकिन सेक्युलर क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत उसे तलाकशुदा पत्नी को तब तक गुजारा भत्ता देना होगा जब तक कि वह फिर से शादी नहीं कर लेती है। इद्दत की अवधि इस्लाम में 3 महीने 10 दिनों की होती है। तलाक और हलाला के बीच की यह एक प्रथा होती है।




हुजूर, केवल 25 हजार रुपये आय है…

चीफ जस्टिस एनवी रमण और जस्टिस एएस बोपन्ना ने मुस्लिम शख्स को फटकार भी लगाई जब उसने कहा कि उसकी आय केवल 25,000 रुपये है और हर महीने पहली पत्नी को 15,000 रुपये देना मुश्किल हो रहा है। उसके वकील ने कहा कि पहली पत्नी को कोई बच्चे नहीं हैं और वह अपने माता-पिता के साथ रहती हैं। उन्होंने दलील रखी, ‘उसे अपने पति से किसी प्रकार की वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है, जो दूसरी शादी कर चुका है। पति को अपनी दूसरी पत्नी और बच्चों की देखभाल करनी है। कृपया, मासिक गुजारा भत्ता 15 हजार रुपये से घटाकर 10 हजार रुपये कर दीजिए।’

क्या तलाक के बाद पैसे की जरूरत नहीं होती?

इस पर पीठ ने कहा कि क्या तलाक के बाद पहली पत्नी का अस्तित्व नहीं रह जाता? क्या उसे सर्वाइव करने के लिए पैसे की जरूरत नहीं होती? बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसला का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता एमएस खादर बाशा (M S Khader Basha) की ओर से दी गई जानकारी से साफ है कि जिस फर्म में वह पार्टनर हैं उसका सालाना टर्नओवर 1,48,00,625 रुपये से अधिक है। लेकिन उनका कहना है कि फर्म से केवल 3,54,349 रुपये की नेट इनकम होती है।

1.5 करोड़ टर्नओवर तो आमदनी कम कैसे

हाई कोर्ट ने कहा है कि यह समझना मुश्किल है कि जिस फर्म का टर्नओवर 1.5 करोड़ से ज्यादा है, वह केवल 3,54,349 रुपये का प्रॉफिट दे रही है। इससे साफ है कि याचिकाकर्ता ने आंकड़े कम दिखाए हैं, जिससे यह कहा जा सके कि उनके पास पर्याप्त आय नहीं है। इस बात का जिक्र करते हुए कि शख्स शान-शौकत की जिंदगी जी रहा है और शहर में इलाज के बाद 1 लाख रुपये का बिल चुकाया है, हाई कोर्ट ने कहा कि 25 हजार रुपये महीने कमाने वाला शख्स महंगे अस्पताल में इतना मेडिकल खर्च वहन नहीं कर सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब आप लग्जरी लाइफ जी रहे हैं तो आपको पहली पत्नी को भी गुजारा भत्ता देना ही होगा। 15 हजार रुपये महीना इतनी ज्यादा राशि नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़े। अगर पहली पत्नी साथ होती तो आप हर महीने 15 हजार रुपये से ज्यादा खर्च करते।

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