Indian News : उदयपुर | राजस्थान के उदयपुर में गवरी नृत्य के दौरान कलाकारों ने अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को साबित किया। यह नृत्य 40 दिनों तक चलने वाली एक धार्मिक परंपरा है, जिसमें कलाकार अपने घर से दूर रहकर तपस्या करते हैं। नृत्य के अंतिम दिन उन्हें ‘माता जी का होला डालना’ के तहत अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ता है, जो इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।
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अग्नि परीक्षा की महत्वपूर्ण परंपरा : गवरी नृत्य में भाग लेने वाले कलाकारों को अग्नि परीक्षा के दौरान अपनी तपस्या की पवित्रता साबित करनी होती है। उदयपुर के आयड स्थित गवरी माता के मंदिर में रात 12 बजे यह अग्नि परीक्षा आयोजित की गई। इस दौरान लगभग 10 सदस्य, जिसमें भोपा, राई और बुढ़िया शामिल थे, ने अपने मुंह और सीने को आग की लपटों के ऊपर से निकाला। इस प्रक्रिया में कोई भी कलाकार घायल नहीं होता है, जो इस परंपरा की विशेषता है।
गवरी नृत्य के नियम और तपस्या : गवरी नृत्य के दौरान कलाकारों को कुछ कड़े नियमों का पालन करना होता है। इसमें हरी सब्जी का सेवन न करना, मांस और शराब से दूर रहना, और पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनना शामिल है। इस तपस्या के दौरान कलाकार परिवार से पूरी तरह दूर रहते हैं और देवालयों में विश्राम करते हैं। वे जमीन पर सोते हैं और दिनभर गवरी नृत्य में विभिन्न खेल और तमाशे प्रस्तुत करते हैं।
संस्कृति और समाज जागरूकता : गवरी नृत्य के माध्यम से आदिवासी भील समाज समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य करते हैं। इस नृत्य के दौरान ‘वड़लिया बडलिया हिंदवा’ जैसे खेलों में पेड़-पौधों की अहमियत को बताया जाता है। गवरी नृत्य सुबह किसी चौक या चौराहे पर शुरू होता है और शाम तक चलता है, जिसमें सैकड़ों लोग हिस्सा लेते हैं।
पार्वती माता की पूजा का अनुष्ठान : गवरी नृत्य की शुरुआत मां पार्वती की पूजा से होती है, जिन्हें गोरजा माता के नाम से भी जाना जाता है। यह परंपरा भादो महीने में भगवान शिव के साथ माता पार्वती के धरती पर भ्रमण के अवसर पर मनाई जाती है। आदिवासी भील समाज इस नृत्य के माध्यम से देवी-देवताओं का आह्वान करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।
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