Indian News : पड़ोसी देश नेपाल से भारत के रिश्ते मित्रवत रहे हैं। दोनों देशों में रोटी-बेटी का रिश्ता माना जाता रहा है। बीते सप्ताह ही नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भारत आए। धार्मिक मैत्री व आस्था को नया आयाम देते हुए बिहार के जयनगर से नेपाल के जनकपुर तक ट्रेन सेवा का शुभारंभ भी किया गया लेकिन एक विषय चिंताजनक है, सीमा से जुड़े भारतीय जिलों में मदरसों की बढ़ी संख्या व बदलती जनसांख्किीय। बीते कुछ वर्ष में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में नेपाल सीमा के पास मदरसों और मस्जिदों की संख्या में वृद्धि हुई है। इस चिंता बढ़ाते विषय पर दैनिक जागरण की विशेष पड़ताल…
उप्र: खुफिया विभाग ने जताई चिंता
सात जिलों से सटी नेपाल की 550 किलोमीटर सीमा जनसंख्या संतुलन के लिए संवेदनशील होती जा रही है। कुछ क्षेत्रों में मु्स्लिम आबादी बढ़ी है।मदरसों और मस्जिदों की बढ़ती संख्या भी चिंता का विषय है। खुफिया इकाइयों ने यहां आबादी के बिगड़ते संतुलन को लेकर चिंता जताई है। गोरखपुर और उसके आसपास के जनपदों से सटी नेपाल सीमा अधिक संवेदनशील है।
चिंता बढ़ाते आंकड़े
वर्ष 2016 के बाद नेपाल सीमा से सटे भारतीय क्षेत्र में बिना मान्यता वाले मदरसों की संख्या बढ़ती जा रही है।
सिद्धार्थनगर जिले में वर्ष 2000 में 147 मदरसे थे। इस समय 597 हैं, जिनमें 145 का पंजीकरण नहीं है।
महराजगंज जिले में मान्यता वाले 252 मदरसे संचालित हैं लेकिन 84 किमी नेपाल सीमा पर इनकी संख्या इससे डेढ़ गुनी अधिक है।
महराजगंज जिले के लक्ष्मीपुर क्षेत्र के कई मौलाना नेपाल के विभिन्न मदरसों में पढ़ाने के लिए जाते हैं।
सीमा से सटे नेपाल के रूपनंदेही व नवलपरासी जिले में कई मदरसे हैं। बेलासपुर में बड़ा मदरसा है।
नेपाल के भैरहवा में स्थित एक मदरसे में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आइएसआइ) के एजेंट के रुकने की सूचना पर दो वर्ष पूर्व पुलिस ने छापेमारी भी की थी।
सिद्धार्थनगर सीमा से सटे दो-तीन किमी क्षेत्र में बीते दो दशक में चार गुना से अधिक मदरसे बढ़े हैं। भारतीय क्षेत्र में सीमा से सटे 784 गांवों के बीच 205 मदरसे तो नेपाल के 157 गांवों के बीच 53 मदरसे हैं।
भारतीय क्षेत्र में 38 मदरसे मस्जिद के साथ संचालित हैं तो नेपाल में नौ। इनकी फंडिंग दुबई व अन्य मुस्लिम देशों से बताई जाती है।
सीमा से सटे नेपाल के कृष्णा नगर मदरसे में वर्ष 1998 में चार कश्मीरी युवक पकड़े गए थे, जिनके तार आइएसआइ एजेंट से जुड़े बताए गए थे। नौगढ़ में 119 तो शोहरतगढ़ में 102 मदरसे हैं।
मदरसों की संख्या और उनके संचालन पर दोनों देशों के अधिकारियों में चर्चा होती रही है, लेकिन चंदे से मदरसों के संचालन पर रोक न होने से कार्रवाई नहीं होती है।
उत्तर बिहार के नेपाल सीमा से सटे मधुबनी, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण और सीतामढ़ी जिले में 10 वर्ष में मदरसों की संख्या बढ़ी है। खासतौर से पूर्वी चंपारण में। नेपाल से सटे रक्सौल, रामगढ़वा, आदापुर, छौड़ादानो प्रखंड के विभिन्न गांवों में छोटे-बड़े 149 मदरसे थे। बीते 10 वर्षो में 16 नए बने हैं। कुल मदरसों में से मात्र नौ ही निबंधित हैं। इन क्षेत्रों में हिंदुओं के मुकाबले मुस्लिमों की आबादी दो गुनी बढ़ी है। इन इलाकों से सटे नेपाल में स्थिति में ज्यादा बदलाव आया है।
दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार नेपाल के परसा, बारा और रौतहट जिले में 300 से अधिक मदरसों का निर्माण हुआ है। इनमें से 45 तो बीते पांच वर्षो के दौरान ही बने हैं। यहां मुस्लिमों की आबादी भी तेजी से बढ़ी है।
पश्चिम चंपारण के मैनाटाड़, गौनाहा और सिकटा प्रखंड के अलावा बगहा दो प्रखंड का वाल्मीकिनगर नेपाल सीमा से सटा है। इन इलाकों में मदरसों की संख्या 25 है। इनमें से आठ बीते 10 साल में बने हैं। मैनाटाड़ प्रखंड के इनरवा बार्डर के समीप भारतीय क्षेत्र के गांवों में बीते 10 साल में मुस्लिमों की आबादी दोगुनी हो गई है।
सिकटा प्रखंड के कठिया-मठिया गांव का हाल भी कुछ ऐसा ही है। अन्य इलाकों में 30 से 35 प्रतिशत मुस्लिम आबादी बढ़ी है।
मधुबनी के जयनगर, बासोपट्टी, लदनिया, हरलाखी, लौकही, मधवापुर प्रखंड में 33 मदरसे हैं। 10 वर्ष पहले इनकी संख्या 20 थी। सीतामढ़ी के बैरगनिया, परिहार, सोनबरसा, मेजरगंज, सुरसंड में सात मदरसे चल रहे हैं।
अररिया में सीमा पर भारतीय क्षेत्र में अधिकांश मदरसे एवं मस्जिदों का संचालन या तो ग्रामीणों द्वारा हो रहा है या सऊदी अरब द्वारा भेजे गए धन से हो रहा है। बताया जा रहा है कि सऊदी अरब की संस्था ऐसे मदरसों की एवं मस्जिदों की सूची अपने पास रखती है और जरूरत पड़ने पर संचालन में मदद भी करती है।
ऐसे मदरसों में नरपतगंज प्रखंड के बड़ा बबुआन, बसमतिया, घूरना, पथराहा, फुलकाहा, सोनापुर, भंगही का आदि के मदरसे एवं मस्जिदें शामिल हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के नरपतगंज इलाके में 20 मस्जिदें, आठ मदरसे हैं। जोगबनी क्षेत्र में 10 मदरसे और 18 मस्जिदें हैं। पुलिस अधीक्षक अशोक सिंह का कहना है कि जांच के बाद ही कुछ बताया जा सकता है।
उत्तराखंड: सीमावर्ती नेपाली जिलों में बढ़ रही समुदाय विशेष की आबादी
नेपाल के सीमावर्ती जिलों में तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव (डेमोग्राफिक चेंज) हो रहा है। 26 जनवरी 2022 को जारी नेपाल की जनगणना में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सुरक्षा एजेंसियां इसे सुनियोजित साजिश बताती हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार 2012 से 22 के मध्य नेपाल का पूरा समीकरण बदला है। गोरखा आबादी में 18,860 की कमी आई है।
जनसंख्या वृद्धि दर में तेजी
वहीं भारत से लगते नेपाली जिले कैलाली और कंचनपुर की जनसंख्या वृद्धि दर सामान्य पहाड़ी जिलों के 0.93 के सापेक्ष 1.54 प्रतिशत अधिक है। कंचनपुर की वार्षिक वृद्धि दर 1.32 प्रतिशत दर्ज की गई है। नेपाल के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग के अनुसार 2012 में कैलाली की जनसंख्या सात लाख 75 हजार 709 से नौ लाख 11 हजार 155 तक पहुंच गई है। कंचनपुर की जनसंख्या चार लाख 51 हजार 248 से बढ़कर पांच लाख 17 हजार 645 हो गई है।
पलायन है वजह, संसाधनों पर कर रहे कब्जा
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार भारत से लगते नेपाली जिलों में आए जनसांख्यिकीय बदलाव में अहम वजह पलायन है। नेपाल के मूल निवासी पलायन कर दूसरे शहरों में काम के लिए गए, लेकिन एक समुदाय विशेष ने वहां के संसाधनों पर कब्जा जमा लिया।
सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी
बीते 10 वर्ष में इन्होंने खुद को इतना सक्षम बना लिया कि सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक व्यवस्था को भी प्रभावित करने लगे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार आइएसआइ नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में सक्रिय है। जून 2000 में भी भारत-नेपाल सीमा पर तेजी से बन रहे धर्म विशेष के स्थलों से सावधान रहने की चेतावनी जारी गई थी।
सुनियोजित तरीके से बनाया जा रहा गलियारा
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार बांग्लादेश, बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के मध्य सुनियोजित तरीके से समुदाय विशेष के लिए गलियारा तैयार किया जा रहा है। साजिश पाकिस्तान को इस गलियारे से जोड़ने की है। इसमें बीते 10 वर्ष में शरणाíथयों के नाम पर बड़ी आबादी इस गलियारे में शिफ्ट भी की गई है।
सामरिक महत्व वाले क्षेत्रों में ज्यादा सक्रियता
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार योजना के तहत धर्म विशेष के अधिकांश शिक्षण संस्थानों को उन्हीं क्षेत्रों में खोला जा रहा है जो सामरिक रूप से अहम हैं। इसी श्रेणी में उत्तराखंड के पिथौरागढ़, ऊधम सिंह नगर व चंपावत भी आते हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व बस्ती मंडल को भी इसी क्रम में चुना गया है।
पंजाब: कश्मीर के रास्ते मस्जिदों की फंडिंग
भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज 50 किमी के दायरे में तीन मस्जिदों के निर्माण में कश्मीर के रास्ते फंडिंग हुई थी। केरल की संस्था रिलीफ एंड चैरिटेबल फाउंडेशन आफ इंडिया (आरसीएफआइ) ने 2019 में फरीदकोट जिले के फरीदकोट, जैतो व मत्ता अजीत सिंह गिल में तीन मस्जिदों का निर्माण करवाया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि संस्था ने विदेश में रह रहे लोगों या संगठनों से प्राप्त धन को कश्मीर के बारामूला के दो लोगों के माध्यम से फरीदकोट भेजा।
मिल रही विदेशी मदद
रिपोर्ट के अनुसार आरसीएफआइ ने पंजाब की बार्डर बेल्ट (पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन, फिरोजपुर व फाजिल्का) समेत देश के कुछ और हिस्सों में भी मस्जिद निर्माण के लिए 70 करोड़ रुपये का विदेशी धन हासिल किया। पौने सात लाख की आबादी वाले फरीदकोट जिले में मुस्लिमों की आबादी लगभग दो हजार है। जिले में छोटी-बड़ी 20 मस्जिदें हैं। इनमें से ज्यादातर बहुत पुरानी होने के कारण बंद पड़ी हैं। कुछ पर लोगों ने कब्जा कर रखा है।
पंजाब में यूं बदली आबादी की हिस्सेदारी
समुदाय- 1981- 1991- 2001- 2011 (वर्ष)
सिख- 60.75- 62.95- 59.91- 57.69
हिंदू- 34.46- 36.94- 36.94- 38.49
मुस्लिम- 1.00- 1.18- 1.57- 1.93
ईसाई — — 1.20- 1.26
(आंकड़े कुल आबादी के प्रतिशत में )
पंजाब में 261 रोहिंग्या मुसलमान
पंजाब सरकार के रिकार्ड के अनुसार राज्य में 261 रोहिंग्या मुसलमान हैं, जो मोहाली जिले के डेराबस्सी और हंडेसरा क्षेत्रों में रह रहे हैं। 261 रोहिंग्या मुसलमानों में से 191 डेराबस्सी में, जबकि 70 हंडेसरा गांव में हैं। इनमें से 227 के पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) का प्रमाणपत्र है। लुधियाना में बिहार और उत्तर प्रदेश से रोजगार की तलाश में आए मुसलमान यहीं बस गए।