Indian News : प्रयागराज | आगरा की 14 वर्षीय राखी सिंह धाकरे, जो कभी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में जाने का सपना देखती थीं, ने महाकुंभ में नागा साधुओं से प्रेरित होकर संन्यास का मार्ग चुन लिया। अब वह जूना अखाड़ा की संत गौरी गिरि महारानी के रूप में अपनी नई पहचान बना चुकी हैं।

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परिवार ने किया गुरु के हाथों दान : राखी के पिता दिनेश सिंह, जो पेशे से पेठा कारोबारी हैं, और मां रीमा सिंह ने बेटी की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि को गुरु परंपरा के तहत दान कर दिया। राखी ने संन्यास लेने की प्रक्रिया के दौरान गंगा स्नान किया और वैदिक मंत्रों के बीच दीक्षा ली।




सनातन धर्म का प्रचार करने की इच्छा : गौरी गिरि महारानी का कहना है, “बचपन से आईएएस बनने का सपना था, लेकिन कुंभ में आने के बाद विचार बदल गया। अब मैं धर्म ध्वजा के नीचे सनातन धर्म का प्रचार करूंगी।”

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परिवार की भावनाएं और संघर्ष : पिता दिनेश सिंह ने कहा, “बेटी को भगवा वस्त्र में देखकर मन दुखी हो जाता है, लेकिन उसकी इच्छा के आगे झुकना पड़ा।” राखी फिलहाल अखाड़े के शिविर में अपने परिवार के साथ रह रही हैं, लेकिन अब उनका जीवन पूरी तरह से आध्यात्मिक मार्ग पर केंद्रित होगा।

12 साल का कठोर तप और शिक्षा : महंत कौशल गिरि के अनुसार, गौरी गिरि महारानी को 12 साल तक कठोर तप करना होगा। इस दौरान वह गुरुकुल परंपरा के तहत वेद, उपनिषद और धर्म ग्रंथों का अध्ययन करेंगी। इसके बाद वह तपस्या और धर्म प्रचार के मार्ग पर आगे बढ़ेंगी।

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सनातन धर्म में युवाओं की प्रेरणा : गौरी गिरि महारानी की यह यात्रा न केवल उनके जीवन का बड़ा परिवर्तन है, बल्कि युवाओं के लिए भी एक प्रेरणा है। उनका संन्यास लेना दर्शाता है कि सनातन धर्म आज भी नई पीढ़ी के बीच अपनी गहरी जड़ें बनाए हुए है।

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