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28 और 29 सितंबर की रात. भारत के वीर जवानों ने मौत को मुट्ठी में लेकर सीमा पार जाकर उरी पर हुए ‘नापाक’ हमले का बदला लिया. आतंकी कैंप और वहां मौजूद आंतकियों को नरक में पहुंचा दिया. नवरात्रि के मौके पर शक्ति का प्रदर्शन किया. ये थी छह साल पहले पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हुई सर्जिकल स्ट्राइक.

कायर आतंकियों ने सोचा था कि भारतीय जवान बदला नहीं लेंगे. हर बार की तरह सरकार भी कोई कड़ा कदम नहीं उठाएगी. पर वो गलत थे. 18 सितंबर 2016 को उरी हमले (Uri Attack) में मारे गए 19 भारतीय जवानों की चिता शांत भी नहीं हुई थी कि हमारे स्पेशल फोर्स के जवानों ने दुश्मन के घर में घुसकर, आंखों में आंखें डालकर, हर एक आतंकी को मौत के घाट उतार दिया. उनके ठिकानों को कब्रगाह में बदल दिया.




उधर, हमारे जवान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में आतंकियों का सफाया कर रहे थे. इधर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री स्व मनोहर परिर्कर, आर्मी चीफ दलबीर सिंह सुहाग, डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह और नॉर्दन कमांड के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा की नजरें पल पल के अपडेट पर थी. सब मिशन के सफल होने की उम्मीद और अपने वीरों के सकुशल लौटने की बाट जोह रहे थे. ये कहानी इतनी आसान नहीं है, जितनी सुनने में लगती है. इस सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) के पीछे बड़ी प्लानिंग थी. भारत के इतिहास में पहली बार इस तरह का ऐतिहासिक कदम उठाया गया था. उरी हमले से नाराज़ देशवासियों का खून खौल रहा था. पाकिस्तान ये मान नहीं रहा था कि उसके सरपरस्त आतंकियों ने ये कायरतापूर्ण हरकत की है. लेकिन भारत की सरकार और सेना दोनों ने सोच लिया था कि करारा जवाब देंगे. और दिया भी. पाकिस्तान इस हमले को लेकर न कुछ कह पाया. न कर पाया. दूसरी तरफ पूरी दुनिया भारत के इस कदम की हैरान थी लेकिन तारीफ भी कर रही थी.

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