Indian News : संजय का हाथ एयर मार्शल पीसी लाल के मामले में भी दिखा, जो भारतीय वायु सेना के पूर्व चीफ थे, और जिन्हें इंडियन एयरलाइंस का चेयरमैन बनाया गया था। लाल 31 जुलाई, 1976 को रिटायर होनेवाले थे। वह अपने उत्तराधिकारी को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी ले रहे थे। उनके बाद उप-प्रबंध निदेशक सत्यमूर्ति का नंबर था। लाल ने अपने विभायीय मंत्री राज बहादुर और प्रधानमंत्री से सितंबर 1975 में बात की और सुझाव दिया कि उनके रिटायर होने के बाद सत्यमूर्ति को प्रबंध निदेशक बना दिया जाए।

साथ ही, अगर वह चाहें तो अंशकालिक चेयरमैन बने रह सकते हैं। श्रीमती गांधी और राज बहादुर इस बात पर सहमत थे कि सत्यमूर्ति को उनका स्थान लेना चाहिए। राजीव कथित तौर पर उनके खिलाफ थे। अक्तूबर में राज बहादुर ने लाल से कहा कि प्रधानमंत्री तीन पायलटों को प्रमोट करना चाहती हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि वे पायलट प्रमोशन के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं। लाल के इनकार ने प्रधानमंत्री को खिन्न कर दिया। इस बीच राज बहादुर ने सत्यमूर्ति को लेकर अपना इरादा बदल लिया और लाल को बता दिया कि वह प्रबंध निदेशक नहीं बनाए जाएंगे।

लाल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की, जो उनके साथ आखिरी मुलाकात थी और कहा कि सत्यमूर्ति अच्छे प्रबंध निदेशक साबित होंगे। वह बोलीं कि सत्यमूर्ति ईमानदार नहीं हैं। दिसंबर में लाल ने कई ट्रांसफर किए। लेकिन राज बहादुर ने कहा कि उनकी इजाजत के बिना कोई भी ट्रांसफर या नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए। फरवरी में बोर्ड का पुनर्गठन किया गया और सत्यमूर्ति को ड्रॉप कर दिया गया। इतना ही नहीं, उनकी जगह एक जूनियर ऑफिसर को बिठा दिया गया।




​जिन्हें अक्षम कहा, उनको तरक्की मिल गई

लाल ने अप्रैल में अपना इस्तीफा दे दिया और छुट्टी मांगी। राज बहादुर ने अपने एक संयुक्त सचिव को भेजकर उनसे कहलवाया कि वह छुट्टी पर न जाएं। लाल ने अपनी छुट्टी की अर्जी वापस ले ली। लेकिन तब तक राज बहादुर को धवन ने बताया कि लाल को छुट्टी पर जाना होगा। लाल ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा लेकिन नहीं मिल सका। बाद में, मंत्रालय ने एक चिट्ठी जारी की कि लाल की सेवा समाप्त कर दी गई है। लाल की ओर से किए गए सारे तबादले रद्द कर दिए गए और जिन तीन को लाल ने अक्षम पाया था, उन्हें तरक्की मिल गई।

​जब संजय गांधी के लिए नाराज हो गए बंसीलाल

संजय गांधी 11 जनवरी 1976 को बंशीलाल के साथ नौसेना के एक कायर्क्रम में बॉम्बे गए। प्रतिष्ठित नूक, जो एमईएस का बंगला था, को सेना और वायुसेना के प्रमुखों के लिए पहले ही बुक कर दिया गया था। नौसेना के अधिकारियों ने संजय और बंसी लाल के लिए किसी दूसरी जगह ठहरने का इंतजाम किया था, जहां एक सुइट और एक डबल रूम था। बंसी लाल ने सुइट संजय को दे दिया और खुद डबल रूम ले लिया। बंसी लाल ने नौसेना प्रमुख एसएन कोहली को बताया कि वह इन इंतजामों से खुश नहीं हैं। फिर रात के औपचारिक खाने पर बैठने की व्यवस्था को लेकर हंगामा खड़ा हो गया। हेड टेबल पर राष्ट्रपति और उनकी पत्नी, राज्यपाल और उनकी पत्नी, बंसी लाल और उनकी पत्नी तथा दो फ्लैग अफसरों के बैठने की जगह थी। यहां तक कि सेना प्रमुखों को भी दूसरी टेबल पर जगह दी गई थी, जिन्हें अंग्रेजी के वर्ण E का आकार दिया गया था।

​संजय को हेड टेबल पर नहीं मिली जगह

संजय को काफी नीचे, नौसेना के अधिकारियों के साथ, जगह दी गई थी। बंसी लाल चाहते थे कि संजय को हेड टेबल पर बिठाया जाए। कोहली ने बताया कि यह संभव नहीं है। बंसी लाल नौसेना के अधिकारियों के सामने ही गाली गलौज पर उतर आए, जैसी कि उनकी आदत थी, जब भी उनकी बात नहीं मानी जाती, वे ऐसा ही करते थे। कोहली के रिटायरमेंट में महज तीन महीने बाकी थे, अचानक उन्होंने वहीं इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। बंसी लाल ने ऐसा होने की उम्मीद नहीं की थी। इस वजह से उन्होंने अपने अपने सुर बदल लिए। चूंकि उनकी पत्नी रात के खाने में शामिल नहीं हुईं, इसलिए उन्होंने वह जगह संजय को दे दी।

​जब किशोर कुमार पर निकली नाराजगी

बंसी लाल को अक्खड़ तौर-तरीकों के लिए जाना जाता था। कुछ समय पहले ही उन्होंने दिल्ली में ऑपरेशंस ब्रांच में तैनात कर्नल सुखजीत सिंह को सस्पेंड कर दिया था। मामला यूपी के तराई इलाके में जमीन की कीमत से जुड़ा था, जिसे कर्नल ने उसके मालिकों को दिला दी थी। बंसी लाल के विशेष सहायक आरसी मेथानी ने सुखजीत सिंह को अपने दफ्तर बुलाया और सबके सामने बेइज्जत किया। बंसी लाल एक कदम और आगे बढ़ गए और उस अफसर को सस्पेंड कर दिया। सत्ता का नशा केवल बंसी लाल पर ही नहीं था। शुक्ला (विद्या चरण शुक्ला) का रवैया भी वैसा ही था। उनकी दिलचस्पी खासतौर पर फिल्म उद्योग में थी और वे सारे हथकंडे अपनाकर यह तय करना चाहते थे कि निर्देशक, निर्माता और सितारे उनके इशारे पर नाचें। किशोर कुमार उनके गुस्से का शिकार हुए थे क्यूंकि उन्होंने दिल्ली में आयोजित यूथ कांग्रेस के एक कार्यक्रम में गाने से इनकार कर दिया था। किशोर के गाने रेडियो और टीवी पर बैन कर दिए गए। कई फिल्मों को सेंसर की मंजूरी का इंतजार करना पड़ता था क्योंकि शुक्ला चाहते थे कि निर्माता और सितारे उन्हें खुश करें। सूचना और प्रसारण मंत्रालय में एक अधिकारी थे एके वर्मा, जो इस क्षेत्र में शुक्ला का कामकाज देखते थे।

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