Indian News : खैरागढ़ ।छत्तीसगढ़ की पहली महिला आईपीएस अंकिता शर्मा देशभर में युवाओं के बीच बेहद ही चर्चित और लोकप्रिय हैं। राजधानी रायपुर के अलावा घोर नक्सल प्रभावित बस्तर में असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट रहकर नक्सल ऑपरेशन की कमान संभाल चुकी, यह आईपीएस प्रदेश के नवगठित खैरागढ़ जिले की पुलिस अधीक्षक होंगी। फ़िलहाल उन्होंने खैरागढ़ में विशेष पुलिस अधिकारी के तौर पर पुलिस विभाग की कमान संभाल ली हैं। अंकिता शर्मा जितनी दमदार पुलिस अफसर हैं ,उतनी ही खूबसूरत भी हैं। ट्वीटर और इंस्टाग्राम पर भी उनके ढेरों फॉलोवर्स हैं। पेश है करोड़ो युवाओं की प्रेरणा बन चुकीं आईपीएस अंकिता शर्मा का अब तक का सबसे अलग इंटरव्यू। पढ़िए वन इंडिया संवाददाता धीरेन्द्र गिरि गोस्वामी की अंकिता शर्मा से बातचीत।
नवगठित खैरागढ़ जिले की होंगी पहली एसपी
सवाल – नवगठित खैरागढ़ जिले की कमान संभालने का मौका आपको मिला है,अपने इस नए अनुभव को कैसे शेयर करेंगी?
जवाब- जब मेरी पोस्टिंग हुई , तो मुझे बहुत अच्छा लगा ,क्योंकि शासन ने एक नवगठित जिले में सृजन करने का अवसर मिला है। खैरागढ़ में काम करने के चुनौती होगी ,क्योंकि एक कहावत है जो व्यक्ति घर बनाना सीख जाता है,वह सारे काम अपने आप सीख जाता है,इसलिए मै मानती हूं कि खैरागढ़ में पुलिस विभागका एक नया सेटअप तैयार करने का काम मुझे मिला है,जो काफी नए अनुभव लेकर आएगा।
नक्सल समस्या पर खुलकर शेयर किये अपने अनुभव
सवाल- नक्सल प्रभावित बस्तर में काम करना कितना चुनौती पूर्ण था ? क्या आपको लगता है कि बस्तर अब बदल रहा है?
जवाब – बिलकुल मै यही कहना चाहूंगी कि बस्तर अब बदल रहा है और बदल भी चुका है। जो लोग इस धारणा को लेकर बैठे हुए हैं कि बस्तर केवल लाल है, तो मै उनसे कहूंगी कि बस्तर लाल नहीं हैं ,वह एक इंद्रधनुष की तरह रंगीन है। लोगों को बस्तर जाकर उसकी खूबसूरती को देखना चाहिए।
जहां तक माओवादी इलाके में काम के दौरान भय की बात है, तो यह समझना जरूरी है कि जब आईपीएस की ट्रेनिंग होती है , तो अफसरों के मन से महिला और पुरुष का भेद हटा दिया जाता है। पुलिस विभाग में ,जो काम पुरुष अफसर करते है,वही ड्यूटी महिला अफसर भी करती हैं, पुलिस जब भी जंगलों में जाती है ,तो साथी अमला साथ होता है, इसलिए जंगलो में पुलिसिंग के दौरान भय आ जाये , ऐसी कोई चीज मन में नहीं रह जाती है।
जहां तक नक्सलियों की बात है ,वह एक विचारधारा के चलते सक्रिय हैं, लेकिन जिसपर प्रकार से ग्रामीणों को बहला फुसलाकर उन्हें झूठे सपने दिखाए जाते हैं,इसलिए वह माओवाद की राह पर ले जाते हैं। लेकिन आप देखेंगे कि शासन और पुलिस विभाग के प्रयासों से माओवादियो की विचारधारा की तरफ जा चुके थे,वह वापस लौटकर बस्तर के विकास में योगदान देने लगे हैं।
सवाल – क्या नक्सलियों की घर वापसी और आत्मसम्पर्ण अभियान का असर दिखने लगा है?
जवाब – बस्तर में पुलिस ने माओवादियों को मुख्यधारा में वापस लाने के लिए मावा अलसाना, लोन वराटू जैसे कई अभियान चला रखे हैं। जब शासन पिछड़े इलाकों में विकास पहुंचा रही है, तो भटके हुए लोगों को भी लगने लगा है कि बदलते बस्तर में हम भी विकास का हिस्सा बनें। बस्तरमें कई पुलिस कैम्प खुलने के बाद ग्रामीणों में शासन के प्रति विश्वास बढ़ा है और वह विकास के करीब आने लगे हैं।
सवाल – लेकिन बस्तर में पुलिस कैम्पो के विरोध में भी प्रदर्शन हो रहे हैं?
जवाब- एल.डब्लूई प्रपोगेंडा वारफेयर के माध्यम से भ्रम फ़ैलाने का काम करते हैं, लेकिन उनकी करतूतों से सच बदल नहीं सकता है। हमने एक महीना पहले जहां कभी बिजली और पानी नहीं पहुंची थी,उस ग्राम चांदामेटा में कैम्प लगाया था। आज वहां सड़क ,बिजली पानी और राशन की व्यवस्था हो चुकी हैं। यह सारे काम विकास के पहलू हैं।
किरण बेदी से प्रभावित होकर बनीं छत्तीसगढ़ की पहली महिला आईपीएस
सवाल – आपका पुलिसिंग का स्टाइल कैसा है? फिल्मो वाली पुलिस की तरह ?
जवाब – फिल्मो वाली पुलिसिंग का स्टाइल तो जरा भी नहीं, क्योंकि रील लाइफ और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है। फिल्मो की पुलिस एक साल में फिल्म बनाकर 3 घंटे के लिए मंच पर आ जाती है, असली पुलिसिंग में ऐसी बिलकुल नहीं होती। जब मै फील्ड पर निकलती हूं ,तो मेरे मन में चल रहा होता है कि कैसे लोगों की समस्या को हल कर सकूं।
पुलिसिंग का स्टाइल है सादगीभरा
सवाल – आपका पुलिसिंग का स्टाइल कैसा है? फिल्मो वाली पुलिस की तरह ?
जवाब – फिल्मो वाली पुलिसिंग का स्टाइल तो जरा भी नहीं, क्योंकि रील लाइफ और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है। फिल्मो की पुलिस एक साल में फिल्म बनाकर 3 घंटे के लिए मंच पर आ जाती है, असली पुलिसिंग में ऐसी बिलकुल नहीं होती। जब मै फील्ड पर निकलती हूं ,तो मेरे मन में चल रहा होता है कि कैसे लोगों की समस्या को हल कर सकूं।
किरण बेदी हैं आदर्श ,लेकिन राजनीति में नहीं है रूचि
सवाल – पुलिस अफसर बनने का सपना कब देखा?
जवाब – आईपीएस बनने का सपना मैंने बचपन में ही देख लिया था, क्योंकि सपने हमेशा बड़े देखने चाहिए। सपने उन्ही के पूरे होते हैं। मेरी माँ हमेशा मुझसे कहती थी कि तुम्हे किरण बेदी जैसा बनना है ,आज समझ आता है कि किरण बेदी जी क्या हैं? मेरे बाल भी किरण बेदी की तरह बॉय कट ही रहते थे।जब कोई मुझसे पूछता था कि बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो ,तो मै हमेशा यही कहती थी कि मुझे किरण बेदी बनना है। मुझे यह नहीं पताथा कि पुलिस अफसर ही बनना है, लेकिन किरण बेदी को आदर्श मानते हुए रास्ता साफ़-साफ़ दिखने लगा था।
कहते है कि दिन में एक बार हर व्यक्ति की जुबान में सरस्वती का वास होता है, उस समय जो बोलते हैं, वह बात सच हो जाती है। मेरा मानना है कि चौथी कक्षा तक मैंने किरण बेदी जैसा बनने की बात को इतना दोहराया कि वह सच हो गया। जब मै बारहवीं की परीक्षा पास की ,तो मैंने तय कर लिया कि सिविल सर्विस में ही जाना है। मुझे लगता है कि आज भी शीर्ष स्तर पर बहुत कम महिला पुलिस अधिकारी देखने को मिलती हैं,इसलिए दूसरी सेवाओं की तुलना में पुलिस विभाग में महिलाओं की अधिक आवश्यकता है। मुझे लगता है कि मै पुलिस विभाग में काम करते हुए महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में अपना योगदान दे सकती हूं।
सवाल – आपकी आदर्श , देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी ने बाद में राजनीतिक पारी भी खेली, आप भी भविष्य में कुछ अलग करने की सोचती हैं?
जवाब – अभी सिर्फ 24 घंटे पुलिसिंग के बारे में ही सोचती हूं ,मुझे नहीं लगता कि मै इसके आलावा कुछ कर पाउंगी।
सवाल – आपको कोई शौक है ?
जवाब – मुझे खेलना दौड़ना बहुत पसंद है। इसके अलावा पेंटिंग करना और घूमना पसंद है। मेरे शौक किसी भी आम लड़के या लड़की की तरह की बेहद ही सामान्य है। मै सामान्य इंसान जैसे ही जिंदगी जीना पसंद करती हूं।
मेहनत को संघर्ष का नाम ना दीजिये सवाल – अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आपको संघर्ष का सामना करना पड़ा ? जवाब – बिना चुनौतियों के कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है। मेरा मानना है जब सबको इन चुनौतियों का सामना करना ही है ,तो उसे संघर्ष का नाम क्यों दिया जाता है। कोई सड़क सीधी होती है, कोई तिरछी फिर भी उसपर लोग चलते हैं। इसलिए संघर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती,वह मंजिल तक पहुँचने का एक हिस्सा होता है। मुझे ऐसा नहीं लगता कि मै कभी थकी,क्योंकि मुझे पता था कि मुझे क्या करना है और मै वह कर सकती हूं। इसलिए जो मेहनत थी उसे मै संघर्ष नहीं कहूंगी ,वह केवल मंजिल तक पहुँचने का हिस्सा था ,जो अब पीछे रह गया है। सवाल – आप एक फेमस यूथ आइकॉन भी हैं। युवाओं में किस प्रकार के सुधार की गुंजाइश देखती हैं? जवाब – मेरे पास ईमेल ,चिट्ठी के माध्यम से बच्चों के संदेश आते हैं। युवाओं को अपनी परिस्थितियों का हवाला देकर सहानुभूति नहीं अर्जित करनी चाहिए, क्योंकि बहुत सारे लोग इन्ही विषम परिस्थितियों से लड़कर सफल बने हैं।
अगर उनका संकल्प मजबूत हो ,तो वह जरूर सफल बनेंगे। आजकल दुनिया में इतना ग्लैमर है कि युवा जल्दी भटक जाते हैं ,उसे कंट्रोल करने की जरूरत है। जब मै आईपीएस की तैयारी कर रही थी, तो स्मार्ट फोन बंद करके छोटा वाला सिंपल फोन ही चालू रखती थी ,इसलिए यह समझना जरूरी है कि पढाई के दौरान जो चीजे आपको भटका सकती हैं,उसे खुद से दूर कर दीजिये। जब आप सफल हो जायेंगे तो आगे बहुत अवसर मिलेंगे। मैंने देखा है कि पहले प्रयास में सफल ना हो पाने के बाद युवा डिप्रेशन में चले जाते हैं या नशे का सहारा लेने लगते हैं। यह सब चीजे बहुत गलत हैं। पहली बार में सफलता नहीं मिली है , तो दूसरे या तीसरे बार भी प्रयास कीजिये। देखिये पहले कहां कमी रह गई थी, वह समझ जायेंगे तो आगे बढिये ,खुद को कमतर आंकने की जगह और मेहनत कीजिये, यकींन मानिये ,जो हासिल करना चाहते हैं ,उसमे सफलता जरूर मिलेगी।
बस्तर से है लगाव, माओवदियों से लिया था लोहा सवाल – रायपुर में नशे की खिलाफ आपने अभियान चलाया था,यह अनुभव वहीं से मिला है ? जवाब – रायपुर में हमारे तत्कालीन एसएसपी अजय यादव साहब के मार्गदर्शन में पुलिस ने ऑपरेशन क्लीन चलाया था। उन्होंने रायपुर शहर में गांजे,कोकीन ,चरस के खिलाफ एक बड़ा अभियान खड़ा किया था। एसएसपी साहब ने सबको नशे के खिलाफ कार्रवाई करने खुली छूट दे रखी थी। मै यह कह सकती हूं ,उस समय रायपुर में सूखा नशा मिलना बंद ही हो गया था। जिन लोगों ने नशे को ग्लैमर से जोड़कर उसकी लत लगा ली थी, उन युवाओं ने बाद में लत छूटने के बाद हमे शुक्रिया भी कहा था। मेरा मानना है वह एक सफल ऑपरेशन था। सवाल – अब तक सबसे यादगार अनुभव क्या है? जवाब – अनुभव तो बहुत हैं ,लेकिन मै आज भी बस्तर को भूल नहीं पाती हूं । बस्तर में जब पहली बार डीआरजी के जवानों के साथ संवाद हुआ,उसके बाद वह रात ढाई -तीन बजे के करीब जंगलों की तरफ गश्त में जा रहे थे।तब मन में दुआ कर रही थी कि भगवान जितने लोगो को गश्त पर जाते देख रही हूं,उस सभी को सुरक्षित वापस लौटा देना। इस भावना ने मुझे जवानो के साथ बेहतर तालमेल बैठाने में मदद की। आज भी जब कभी जंगलो को देखती हूं , तो वह पल ताजा हो जाता है ,जिसे बस्तर के जंगलो में अनुभव किया था।