Indian News : रायपुर | नया रायपुर बसाने के लिए ली गई जमीन के एवज में उचित मुआवजा नहीं मिलने व शासन के वादाखिलाफी के विरोध में महीनेभर से किसान आंदोलनरत हैं। गुरुवार को नवा रायपुर के किसान सांसद राहुल गांधी व सीएम भूपेश बघेल से मिलकर आमने-सामने अपनी समस्या रखने की ठानी थी, पर ऐसा नहीं हो पाया।

मांगों को लेकर महीनेभर से आंदोलनरत नवा रायपुर के किसान सांसद, राहुल गांधी व सीएम भूपेश बघेल से मिलना चाहते थे, पर शासन किसानों को सभा स्थल से दूर रखना चाहते थे। सूबे के मुखिया से मिलने से पहले ही माना एयरपोर्ट से दूर एक गांव में उन्हें रोक दिया गया। इस दौरान भारी पुलिस बल तैनात था। ऐसा करने पर किसान नाराज हो गए और शासन-प्रशासन के विरोध में खूब नारेबाजी की।

किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे महासमुंद जिला पंचायत सदस्य जागेश्वर जुगनू चन्द्राकर भी रायपुर आने के लिए निकले थे। वे नई राजधानी प्रभावित किसानों के आंदोलन में भागीदारी निभाना चाहते थे। इससे पहले ही महासमुंद पुलिस ने नदी मोड़ घोड़ारी के पास घंटाभर रोके रखा। इस दौरन चन्द्राकर सड़क पर ही सो गए। भारी विरोध के बाद चंद्राकर को रायपुर जाने के लिए छोड़ दिया गया।




बता दें कि सीएम से वार्ता से पहले नया रायपुर के आंदोलनरत किसान अपनी मांगों को लेकर जिद में थे कि वे अपनी बात पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी के सामने रखेंगे। इसलिए वे दोपहर को माना एयरपोर्ट की ओर कूच कर रहे थे। इधर प्रशासन उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था। इसलिए माना एयरपोर्ट से पहले लगभग 5 किलोमीटर दूर ग्राम बरोदा में रोक दिया गया।

इस दौरान किसानों को शासन-प्रशासन ने समझाया, पर वे नहीं माने और प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे, वहीं एयरपोर्ट की ओर जाने लगे, तब दोपहर तीन बजे के लगभग पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। शाम होते तक किसान शांत हो गए। इधऱ एयरपोर्ट पर ही सूबे के मुखिया भूपेश बघेल ने किसानों की बात सुनने एयरपोर्ट पर ही चौपाल लगा दी।

शाम को किसानों का 11 सदस्यीय प्रतिनिधि मुख्यमंत्री बघेल से मिले। मुख्यमंत्री और नवा रायपुर के किसानों के बीच वार्ता कुछ घंटे चली। बता दें कि नवा रायपुर के किसान 3 जनवरी से एनआरडीए परिसर में आंदोलनरत हैं।

ये है पूरा मामला
किसानों के अनुसार साल 2002 में नवा रायपुर बसाने के लिए किसानों से जमीन लेने के लिए बातचीत शुरू हुई थी। 2005-06 में एक आदेश आया, जिसके तहत नवा रायपुर में जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी गई। आदेश में ये भी कहा गया कि जो किसान NRDA को अपनी जमीन नहीं बेचेंगे उनकी जमीन कलेक्टर के आदेशानुसार 2 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से अधिग्रहित कर ली जाएगी। इसके बाद एनआरडीए ने 27 गांवों के 7 हजार किसानों से 10 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन खरीदी गई थी।

जमीन लेने के दौरान ये किया गया था प्रावधान
साल 2013 में एक और सरकारी आदेश जारी किया गया, जिसमें किसानों की जमीन लेने के एवज में उनके पुनर्वास का प्रावधान किया गया। इसके तहत किसानों को नवा रायपुर में मुफ्त प्लॉट देने का ऐलान किया गया। हालांकि किसानों का आरोप है कि पुनर्वास के नाम पर उनके साथ धोखा हुआ और उन्हें मुफ्त प्लॉट नहीं दिया गया। जब किसानों ने आवाज उठाई तो उन्हें कहा गया कि मुआवजे के तौर पर मिली राशि में ही पुनर्वास की राशि भी जुड़ी हुई है।

किसानों का ये कहना है
मामले में किसानों का कहना है कि उविहें एक बार मुआवजा मिल गया है, लेकिन उनकी अगली पीढ़ी कहां जाएगी? कहां बसेगी और कैसे रोजी-रोटी चलाएगी? यही वजह है कि अब किसानों ने आंदोलन का रास्ता पकड़ना पड़ा है।

किसानों की मुख्य मांगें
आंदोलनरत किसानों की मांग है कि नवा रायपुर में पुनर्वास योजना के तहत अर्जित भूमि के अनुपात में उद्यानिकी, आवासीय और व्यवसायिक भूखंड किसानों को मुफ्त दिए जाएं।
भू-अर्जन कानून के तहत जिन किसानों को मुआवजा नहीं मिला है, उन्हें बाजार मूल्य का चार गुना मुआवजा मिले।
किसानों की मांग है कि पुनर्वास योजना के तहत सभी लोगों को 1200 वर्गफीट प्लॉट दिया जाए।
साथ ही जमीन खरीदने और बेचने पर लगी रोक भी हटाई जाए।

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