Indian News : बलरामपुर | कहते हैं भारत गांवों का देश है. भारत की आत्मा गांवों में बसती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के कुछ गांव की हालत आजादी के कई दशकों बाद भी नहीं बदली है. बलरामपुर जिले के खड़ियाडामर पंचायत के आश्रित गांव बचवार 8 किलोमीटर पैदल जंगल और पहाड़ के रास्ते मतदान स्थल तक पहुंचे हैं. लोकसभा का महापर्व में अपना भागीदारी निभाने.

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एक बार फिर आज देश का महापर्व मनाया जा रहा है, पूरे ताम-झाम के साथ हमारे नेताओं का काफिला वोटरों के गांव और घरों में पहुंचे. अपना-अपना मत लेने तमाम तरह के बड़े-बड़े वादे किए. क्षेत्र में विकास और खुशहाली की बात हुआ. लेकिन ये सब हकीकत में हुआ या नहीं इसकी तस्वीर आप खुद देख सकते हैं. तभी तो छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का ये गांव आज भी पूछ रहा है कि हमारी किस्मत कब बदलेगी? यहां आए तमाम नेताओं के वादे जमींदोज हो गए, जी हां हम बात कर रहे हैं बलरामपुर मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर बचवार गांव की जहां वोट देना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं. जहां आजादी के बाद से दुर्भाग्य ने उनका साथ नहीं छोड़ा. ऐसे इलाके विकास से कोसों दूर हैं. जहां विकास की तस्वीर नहीं दिखती है. आज भी ये गांव पिछड़े हैं. यह गांव आज भी सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. आजादी के सात दशक बाद भी काफी दूर तक लोग पैदल ही चलकर वोट करने पहुंच रहे है.

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आपको बता दे 7-8 किलोमीटर दूर है मतदान केंद्र, यहां के लोगों के लिए वोट करना किसी चुनौती से कम नहीं है. क्योंकि जब वोट डालने को निकलते हैं, तो उनके सामने जंगल और पहाड़ी इलाका होता है. मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए यही एक मात्र विकल्प है. करीब 7 से 8 किलोमीटर की दूरी पर खड़ियाडामर पंचायत से दूर बचवार गांव है. जहां इनका मतदान केंद्र होता है. बुजुर्गों का मतदान केंद्र पर पहुंचना संभव ही नहीं है. वोट देकर लौटने में सुबह से शाम हो जाती है, खाने के लिए सत्तू और मकई का भुजा बांंधकर निकलना पड़ता है.

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