Indian News : New Delhi | भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम, 1954 में संशोधन का मामला सियासी आधार पर बंट गया है। भाजपा शासित राज्य इसके पक्ष में अपनी राय भेज रहे हैं। वहीं, गैर भाजपा विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने पहले ही अपना विरोध दर्ज कराया है।

फिलहाल, कई राज्यों द्वारा निर्धारित समय सीमा में जवाब नहीं देने की वजह से सरकार रिमाइंडर भेजने की तैयारी में है। सूत्रों ने कहा कि फिलहाल सरकार समर्थन में माहौल बनाने के लिए कई स्तरों पर प्रयास कर रही है, जिससे विरोध ज्यादा मुखर होकर पूरी तरह राजनीतिक रंग नहीं ले ले।

करीब 17 राज्यों ने दिया जवाब




अब तक करीब 17 राज्यों ने जवाब दिया है। सात राज्यों हरियाणा, मणिपुर, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश, जैसे भाजपा द्वारा शासित राज्यों ने प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी है। जबकि ओडिशा, मेघालय, झारखंड, राजस्थान,छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल ने संशोधनों का विरोध करते हुए जवाब दिया है।

तीन अन्य राज्यों केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। तेलंगाना में तो इस मसले को लेकर टीआरएस और भाजपा में सियासी आरोप-प्रत्यारोप भी हो रहे हैं।

संघवाद की मूल भावना के खिलाफ बता रहे विपक्षी दल

गौरतलब है कि नियमों में बदलाव से अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) अधिकारियों को आवश्यक रूप से राज्य सरकार की अनुमति लिए बिना केंद्र सरकार और केंद्रीय मंत्रालयों में प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। विपक्षी दल इसे संघवाद की मूल भावना के खिलाफ बता रहे हैं। साथ ही इसके दुरुपयोग की भी आशंका जताई जा रही है।

तृणमूल जैसे विरोधी दल मानते हैं कि पहले बीएसएफ एक्ट में संशोधन के जरिये बीएसएफ को ज्यादा अधिकार देना और अब अखिल भारतीय सेवा नियमों में बदलाव कर राज्यों की अनुशंसा को गैर जरूरी बनाने की कवायद दरअसल केंद्र का राज्यों पर शिकंजा बढ़ाने की कोशिश है। विरोधी दल मानते हैं कि इसके माध्यम से अधिकरियों पर पूरी तरह नियंत्रण कर राज्यों में दखलंदाजी संभव है। हालांकि, सरकार ने बिंदुवार तरीके से आपत्तियों को खारिज किया है

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