Indian News : गोरखपुर | उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बांसगांव में नवमी के दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के चरणों में अपना रक्त अर्पित करने की अनोखी परंपरा का निर्वहन किया। यह परंपरा पिछले 300 वर्षों से चली आ रही है और भक्त दूर-दूर से इस विशेष दिन पर मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए यहां पहुंचते हैं।
रक्त अर्पित करने की विशेष परंपरा : हर साल नवमी के दिन, श्रद्धालु यहां मां दुर्गा के चरणों में अपना रक्त चढ़ाते हैं। यह अनूठा विधान बांसगांव में नवजातों के जन्म के 12 दिन बाद से शुरू होता है। नवजात शिशुओं को उनके माता-पिता लेकर आते हैं, और परंपरा के अनुसार, उनके रक्त को मां के चरणों में अर्पित किया जाता है।
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रक्त अर्पित करने की विधि : इस अनुष्ठान में नाई विवाहित पुरुषों के शरीर के नौ स्थानों पर और बच्चों के माथे पर एक जगह चीरा लगाता है। इसके बाद, उस रक्त को बेलपत्र में लेकर मां के चरणों में अर्पित किया जाता है। इसके बाद धूप, अगरबत्ती और हवनकुंड की राख को कटी हुई जगह पर लगाया जाता है।
जानवरों की बलि पर प्रतिबंध : पारंपरिक रूप से, इस प्रक्रिया में जानवरों की बलि दी जाती थी, लेकिन अब मंदिर परिसर में पशु बलि को रोक दिया गया है। भक्त अब मां को रक्त अर्पित करके ही अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। पुजारी श्रवण पाण्डेय ने बताया कि इस परिवर्तन से न केवल धार्मिक अनुष्ठान सुरक्षित हुए हैं, बल्कि श्रद्धालुओं की भक्ति भी बढ़ी है।
मां दुर्गा का आशीर्वाद : स्थानीय लोगों का मानना है कि मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने से उनके परिवार में स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है। यहां के लोग मानते हैं कि इस परंपरा के चलते पिछले 300 वर्षों में न तो किसी को टिटनेस हुआ है और न ही घाव भरने के बाद कहीं कटे का निशान पड़ा है। यह इस बात का प्रतीक है कि मां का आशीर्वाद हमेशा उनके साथ है।
परंपरा का संरक्षण : बांसगांव के लोग इस परंपरा को उसी प्रकार निभा रहे हैं, जैसा उनके पूर्वज करते थे। श्रद्धालुओं का मानना है कि क्षत्रियों द्वारा रक्त चढ़ाने से मां दुर्गा का आशीर्वाद उन पर सदा बना रहता है। यह अनोखी परंपरा न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है, जो हर साल भक्तों को एकजुट करती है।
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